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Thursday, January 30, 2020

अभिक्रमित अनुदेशन विधि

     
Abhikrmit-anudeshn vidhi
अभिक्रमित अनुदेशन विधि Abhikrmit-anudeshn vidhi



 अभिक्रमित अनुदेशन विधि अर्थ परिभाषा - 

अभिक्रमित अधिगम शिक्षण की व्यक्तिगत पद्धति है।
अभिक्रमित अनुदेशन के लिये स्वयं अनुदेशन सामग्री की आवश्यकता होती है। इस सामग्री की सहायता से छात्र स्वयं ही अधिगम करता है। सन् 1963 में भारत में सर्वप्रथम अधिक्रमित अनुदेशन का श्रीगणेश हुआ। सन् 1966 में एक संगठन का निर्माण किया, जिसे 'इण्डियन एसोशियन ऑफ प्रोग्राम्ड लर्निंग' (IAPL) कहते हैं। 500 सदस्य है। (2) जेम्स ई. एस्पिच तथा विर्ल विलियम्स
"अभिक्रमितं अनुदेशन अनुभवों का वह नियोजित क्रम है, जो उद्दीपक अनुक्रिया सम्बन्धों के रूप में कुशलता की ओर ले जाता है।" (3) अमेरिकी मनोवैज्ञानिक “अभिक्रमित अनुदेशन शिक्षण सामग्री  को छोटे-छोटे पदों में व्यवस्थित करने की एक ऐसी प्रक्रिया है में जिसका निर्माण छात्र को स्वयं अध्ययन के माध्यम से ज्ञात से अज्ञात, नवीन एवं अधिक जटिल ज्ञान तथा सिद्धांतों की ओर ले जाती है।" अभिक्रमित अनुदेशन की विशेषतायें(1) सामग्री की क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुति है। सही अनु-क्रियाओं के
लिये पुनर्बलन दिया जाता है। (2) पूर्व व्यवहारों तथा धारणाओं का विशिष्टीकरण करना। (3) छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत करना पड़ता (तार्किक क्रम में)। (4) छात्र तथा अनुदेशन के मध्य अन्तःक्रिया, अनुक्रिया, पृष्ठ पोषण, उद्दीपन, अनुक्रिया तथा पुनर्वलन क्रियाशील रहते हैं। (7) व्यक्तिगत भिन्नता के अनुसार सीखने का अवसर । (8) अनुवर्ग शिक्षण की भाँति कार्य करना । 
अभिक्रमित शिक्षण का उपयोग 1. प्राथमिक शिक्षा के स्तर उन्नयन में भी विधि बहुत सहयोगी है। 2. उपचारात्मक शिक्षण में अभिक्रमित शिक्षण बहुत ही उपयोगी है
अ. हाई स्कूल ब. शालीय शिक्षकों स. विश्वविद्यालीन शिक्षा में पत्राचार पाठ्यक्रम
3 हिन्दी एवं अन्य भाषा शिक्षण में अभिक्रमित शिक्षण सामग्री पुस्तक के रूप में छात्रों को उपलब्ध करायी जा सकती है या फिर टेप रिकार्ड्स या लिंग्वाफोन द्वारा भी भाषा शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। -
4. हिन्दी एवं हिन्दी के क्षेत्र में अभिक्रमित शिक्षण सामग्री नये-नये शीर्षकों पर तैयार कराकर शिक्षकों को उपलब्ध कराई जाए ता शिक्षकों की अपनी व्यावसायिक दक्षता में वृद्धि होगी आर वे छात्रों का अभीष्ट मार्गदर्शन कर सकेंगे। 5. शिक्षण में कमजोर व धीमी गति वाले छात्रों की शिक्षा में,औद्योगिक कर्मचारियों के प्रशिक्षण देने में बैंकों के सेवाकालीन प्रशिक्षण में एवं सेना में अफसरों को प्रशिक्षण देने में अभिक्रमित शिक्षण विधि की उपयोगिता होती है।

अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार : 

1. रेखिय अभिक्रमित अनुदेशन

प्रतिपादक-बी०एफ०स्कीनर (1954 में)

 2. शाखिय अभिक्रमित अनुदेशन

प्रतिपादक-नार्मन०ए०क्राउडर (1960)

 3. मैथेटिक्स या अवरोह

प्रतिपादक-थॉमस एफ० गिलबर्ट (1962 में)
अभिक्रमित अनुदेशन विधि भारत में)1963 में सर्वप्रथम इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रयुक्त की गई ।

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