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Thursday, January 23, 2020

बाल मनोविज्ञान विकास का इतिहास


History of Child Development
History of Child Development




बाल मनोविज्ञान का विकास इतिहास और विकास को प्रभावित करने वाले कारक

मनोविज्ञान के माध्यम से बालक के सभी प्रकार के व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। 
जेम्स डेवर के अनुसार-"बाल मनोविज्ञान बालक के जन्म से लेकर परिपक्वता तक के सभी व्यवहारों का अध्ययन करता है।"
~ क्रै एंड क्रै के अनुसार-"बाल मनोविज्ञान गर्भाधान काल से लेकर पूर्व किशोरावस्था तक सभी प्रकार के व्यवहारों का अध्ययन करता है।"
~बाल मनोविज्ञान का जनक पेस्टालॉजी को माना जाता है।
~बाल विकास का जनक स्टेनली हॉल है।
• शिक्षा मनोविज्ञान एवं बाल मनोविज्ञान के अध्ययन क्षेत्र
•  1. वंशक्रम तथा वातावरण।
•  2. मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ
•  3. अभिवृद्धि तथा विकास।
•  4. व्यक्तिगत भेद।
•  5. व्यक्तित्व
•  6. बुद्धि। 
•  7. अधिगम।
•  8. विशिष्ट बालक।
•  9. अभिरूचि, अभिवृत्ति, अभिक्षमता।
•  10. सृजनात्मकता।
•  11. आदतें।
•  12. निर्देशन एवं परामर्श
•  13. मानसिक स्वास्थ्य
•  14. संज्ञान, स्मृति, विस्मरण
•  15. संवेगात्मक बुद्धि
•  16. संवेदना, प्रत्यक्षण, सम्प्रत्यनिर्माण।
बाल विकास का इतिहास बाल विकास बाल मनोविज्ञान का आधुनिक या विस्तृत रूप है। बालक की शारीरिक मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक, बौद्धिक आदि पक्षों में परिपक्वता बाल विकास कहलाती है। 17वीं सदी तक बालक के विकास के अध्ययन को कोई महत्व नहीं दिया जाता था परन्तु प्राचीन दार्शनिक बालक के विकास के अध्ययन के लिए निरन्तर प्रयासरत रहे।
प्लेटो (427-344 ई.पू.) ने अपनी पुस्तक 'Republic' में इस तथ्य को स्वीकार किया कि बाल्यावस्था के प्रशिक्षण का प्रभाव बालक के बाद की व्यावसायिक दक्षताओं पर और समायोजन पर पड़ता है।
बालक के विकास का प्रथम बार वैज्ञानिक विवरण 18वीं शताब्दी (1774 ई.) में 'पेस्टोलॉजी' ने प्रस्तुत किया। इनका यह विवरण अपने स्वयं के साढ़े तीन वर्षीय पुत्र पर 'बेबी बायोग्राफी' पर आधारित था। जर्मनी के चिकित्सक डॉ. टाइडमैन ने भी 1784 ई. में अपने बच्चों के मानसिक एवं शारीरिक विकास का निरीक्षण कर एक विवरण दिया था। 19वीं शताब्दी में अमेरिका में बाल-अध्ययन' आन्दोलन की शुरूआत हुई। स्टैनली हॉल' (इस आन्दोलन के जन्मदाता) ने 1893 ई. में इस आन्दोलन की शुरूआत की थी। इन्होंने ही बाल अध्ययन समिति' (चाइल्ड स्टडी सोसायटी) एवं बाल वेलफेयर संगठन' जैसी संस्थाओं का गठन कर बाल विकास सम्बन्धी अध्ययनों में प्रश्नावली विधि' का प्रयोग किया।
नोट- भारत में बाल विकास के अध्ययन की शुरुआत लगभग 1930 में हुई।

बाल विकास की परिभाषाएँ~

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जेम्स ड्रेवर के अनुसार, "विकास प्राणी में होने वाला प्रगतिशील परिवर्तन है जो निश्चित रूप से किसी लक्ष्य की ओर लगातार निर्देशित होता रहता है। उदाहरण के रूप में किसी भी जाति में भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक परिवर्तन है।"

हरलॉक के अनुसार, "विकास की सीमा अभिवृद्धि तक ही नहीं है अपितु इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर प्रगतिशील क्रम निधि रहता है। विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में अनेक नवीन विशेषताएँ एवं नवीन योग्यताएँ स्पष्ट होती हैं।
क्रो एवं क्रो के अनुसार, "बाल विकास वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसमें गर्भावस्था के प्रारम्भ से किशोरावस्था के प्रारम्भ तक होने वाले विकास का अध्ययन किया जाता है।" उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्ष निकलता है कि बाल विकास वह शाखा है जिसमें गर्भावस्था से परिपक्वावस्था तक होने वाले विकास का अध्ययन किया जाता है।   

बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक

         
जन्म क्रम-बालक के विकास पर परिवार के जन्म-क्रम का प्रभाव पड़ता है। जैसे प्रथम बालक की अपेक्षा दूसरे व तीसरे बालक का विकास तीव्र गति से होता है। क्योंकि बाद के बालक अपने पूर्व में जन्में बालकों से अनुकरण द्वारा अनेक बातें शीघ्रता से ग्रहण कर लेते हैं।
•भयंकर रोग एवं चोट-भयंकर रोग एवं चोट बालक के विकास में बाधा डालते हैं। जैसे लम्बी बीमारियों एवं गम्भीर चोट के कारण बालक का विकास अवरूद्ध हो जाता है।
• खेल एवं व्यायाम-नियमित खेल एवं व्यायाम बालक के शारीरिक विकास में सहायता देते हैं शरीर व मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। कहावत है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। इस प्रकार शारीरिक व मानसिक विकास में खेल और व्यायाम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
• वातावरण-व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ भी है वही उसका परिवेश/वातावरण/पर्यावरण है। बालक जिस परिवेश/वातावरण में निवास करता है वहाँ का सम्पूर्ण वातावरण बालक के विकास पर पूर्ण प्रभावशाली रहता है-ये आन्तरिक व बाह्य प्रकार के होते हैं।
• पोषाहार–सन् 1955 में वाटरलू में अफ्रीका व भारत के बालकों के विकास पर कुपोषण के विकास का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है कि कुपोषण से बालकों का शारीरिक व मानसिक विकास अवरूद्ध हो जाता है।
•  प्रजाति-प्रजाति प्रभाव के कारण भी बालकों के विकास में विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। जैसे उत्तरी यूरोप की अपेक्षा भूमध्यसागरीय बच्चों का । विकास तेजी से होता है।
•   बुद्धि-कुशाग्र बुद्धि वाले छात्रों का शारीरिक व मानसिक विकास मन्द बुद्धि वाले छात्र के शारीरिक एवं मानसिक विकास की अपेक्षा तेज गति से होता है। कुशाग्र बुद्धि वाले बालक, मन्द बुद्धि वाले बालकों की अपेक्षा शीघ्र बोलने व चलने लगते हैं।
•   अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ-बालक के शरीर में अनेक अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ होती हैं जिनमें से विशेष प्रकार के रस का स्राव होता है। यही रस बालक के विकास को प्रभावित करता है। यदि ये ग्रन्थियाँ इस का स्राव ठीक प्रकार से न करें तो बालक का विकास अवरूद्ध हो जायेगा।
•  आयु–बालक में आयु वृद्धि के साथ-साथ शारीरिक विकास की गति एवं स्वरूप में भी परिवर्तन होते हैं छोटे बच्चे का शरीर लचीला होता है धीरेधीरे यह कठोर हो जाता है। साथ ही बालक का मानसिक विकास भी आयु से प्रभावित होता है।
•   वंशानुक्रम कारक-बालक के विकास को प्रभावित करने वाला यह पहला प्रमुख कारक है। अपने पूर्वजों या माता-पिता से गर्भाधान के समय बालक को जो गुण प्राप्त होते हैं उसे 'वंशानुक्रम या आनुवांशिकता' कहते हैं। प्रायः देखा जाता है कि जिसके माता-पिता लम्बे होते हैं तो उनकी सामान्यतः सन्तानें भी लम्बी होती हैं।
•    लिंग-बालक के शारीरिक एवं मानसिक विकास में लिंग भेद का प्रभाव पड़ता है। जन्म के समय बालकों का आकार बड़ा होता है किन्तु बाद में बालिकाओं के शारीरिक विकास की गति अपेक्षाकृत तीव्र होती है। इसी कारण बालिकाओं में मानसिक एवं यौन परिपक्वता बालकों से पहले आ जाती है।

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