नेपाल में हाल के जन आंदोलन (Gen-Z Protest), ओली सरकार, ट्रिगर, मांगें, घटनाक्रम, परिणाम और चुनौतियों Jagriti PathJagriti Path

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Friday, September 12, 2025

नेपाल में हाल के जन आंदोलन (Gen-Z Protest), ओली सरकार, ट्रिगर, मांगें, घटनाक्रम, परिणाम और चुनौतियों

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नेपाल की पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की


नेपाल की पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की बन गई है। राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल ने राष्ट्रपति भवन शीतल निवास में उन्हें शपथ दिलाई हैं। हालांकि मंत्रिमंडल का गठन नहीं हुआ हैं, क्योंकि राष्ट्रपति ने 6 माह के भीतर चुनाव कराने का ऐलान किया हैं। हालांकि जेनरेशन जेड ने वर्तमान अंतरिम सरकार में शामिल होने में इनकार किया है।
जनरेशन Z आंदोलनों (Gen-Z Protest) और केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी हुई थी। 12 सितंबर 2025 सुशीला कार्की को अंतरिम पीएम बनाया गया है। वह नेपाल की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश रह चुकी हैं। देश भर में हुए प्रदर्शनों में लगभग 51 लोगों की मौत हुई है। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच कई जगह संघर्ष हुआ। प्रदर्शनकारी कुछ समूहों में विभाजित हैं, खासकर इस बात को लेकर कि अंतरिम सरकार कैसे बने। 
राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल की अध्यक्षता में, सुशीला कार्की के नाम पर राजनीतिक दलों और जन-आंदोलन समूहों में सहमति बनी है कि वह अंतरिम सरकार का प्रमुख हों। 

नेपाल में अब तक क्या हुआ पूरा घटनाक्रम एक नजर में 


नेपाल के नौजवान ग़ुस्से में है. इनका ग़ुस्सा न केवल सड़क से संसद तक देखा जा सकता है बल्कि ऑनलाइन भी इनकी नाराज़गी साफ़ दिख रही है. सोशल मीडिया पर हैशटैग नेपोकिड ट्रेंड में है. इस हैशगैट के साथ नेपाल के नौजवान अपने नेताओं के बच्चों की रईसी को वीडियो और फोटो के ज़रिए दिखा रहे हैं। नेताओं के बच्चों की लग्ज़री कारें, ब्रैंडेड कपड़े, महंगी घड़ियां और विदेशी दौरे के वीडियो और फोटो वायरल हो रहे हैं।
 

नेपाल हाल ही के ताजा घटनाक्रम का विश्लेषण 


नेपाल में जब सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर पंजीकरण नहीं करने वालों को ब्लॉक करने की सरकारी नीति को युवाओं ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना, तो सरकार ने शुरुआत में विरोध को नियंत्रित करने के बजाय उस नीति को बनाए रखने की कोशिश की। प्रधानमन्त्री के.पी. शर्मा ओली ने सार्वजनिक मंचों पर कहा कि सोशल मीडिया का प्रतिबंध “राष्ट्र की गरिमा और कानून” बनाए रखने के लिए आवश्यक था। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी भी ऐसा आंदोलन जिसे वह “Gen Z ट्रबलमेकर” कह रहे थे, राष्ट्रहित को कमजोर नहीं कर सकता। 

लेकिन विरोध बढ़ने के साथ सरकार ने सुरक्षा बलों को लगाए गए प्रतिबंध और पुलिस कार्रवाई की व्यवस्था सख्त कर दी। काठमांडू सहित कई बड़े शहरों में पुलिस ने बैरिकेड लगाए, सड़कों को जाम किया गया, प्रदर्शनकारियों को आसपास के क्षेत्रों से निकालने के लिए वाटर कैनन, आंसू गैस, रबर बुलेट का उपयोग किया गया। जब प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के पासrestricted ज़ोन में प्रवेश करने की कोशिश की, तो पुलिस ने तात्कालिक रूप से बल प्रयोग किया। 

स्थिति और बिगड़ी जब पुलिस ने कुछ स्थानों पर लाइव फायरिंग की। इसके कारण कई प्रदर्शनकारियों की मौतें हुईं, और सैकड़ों घायल हुए। अस्पतालों में पहुँचने पर कई घायलों के सिर, छाती आदि हिस्सों में गोली लगने की सूचनाएँ मिलीं। 

इस बीच सरकार ने आपात बैठकें बुलाईं। कैबिनेट मीटिंग हुई जिसमें निर्णय लिया गया कि सोशल मीडिया प्रतिबंध को वापस लिया जाए। सूचना एवं संचार मंत्री, प्रित्वी सुब्बा गुरुंग ने कहा कि कई प्लेटफार्मों को पुनः सक्रिय किया जाएगा, क्योंकि विरोध इतना व्यापक हो चुका है कि सांविधानिक और लोकतांत्रिक दबाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता। 

सरकार ने कर्फ्यू लगाया। कई शहरों में कर्फ्यू लगाया गया, खासकर काठमांडू, भक्तपुर, ललितपुर, भैरहवा, इटहरी जैसे जगहों पर। रात के समय तथा प्रदर्शन क्षेत्रों के आसपास जनता को बाहर निकलने से रोका गया। सार्वजनिक सभा और प्रदर्शन को प्रतिबंधित किया गया। लेकिन जब झड़पें और हिंसा बढ़ी, तो गृह मंत्री Ramesh Lekhak ने पद से इस्तीफ़ा दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें पुलिस कार्रवाई और मौतों पर “नैतिक ज़िम्मेदारी” लेनी चाहिए। 

प्रधानमंत्री ओली ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने और घायलों का मुफ्त इलाज सुनिश्चित करने की घोषणा की। उन्होंने एक जांच समिति गठित करने का आदेश दिया, जिसमें यह देखा जाएगा कि किन परिस्थितियों में बल प्रयोग हुआ, कितने नुकसान हुए, और भविष्य में ऐसे हालात न हों इसकी क्या सुधारात्मक कार्रवाई हो सकती है। अंततः, सरकार ने वह निर्णय लिया कि सोशल मीडिया प्रतिबंध वापस होगा।blocked प्लेटफार्मों की सर्विस पुनर्स्थापित कर दी गई ताकि जनता का विरोध शांत हो सके। 
जब ‘Gen Z’ आंदोलन बढ़ा, युवा और विद्यार्थी ओली सरकार से सीधे आमने-सामने आने लगे। काठमांडू के सड़कों पर उन्होंने ओली के निवास तक मार्च किया, तायर जलाए, सड़कें अवरुद्ध कीं, बैरिकेड तोड़े और संसद भवन के बाहर पहुचने की कोशिश की। कुछ प्रदर्शनकारियों ने ओली के सरकारी आवास और अन्य राजनीतिक नेताओं के घरों को आग लगाने की कोशिश भी की। घरों के बाहर “KP Chor, Desh Chhod” (के पी चोर, देश छोड़ दे) जैसे नारों के साथ उन्होंने ओली पर भ्रष्टाचार और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग होने का आरोप लगाया।
ओली ने विरोधियों के नारों, सोशल मीडिया प्रतिबंध और प्रदर्शनकारियों की मांगों के जवाब में कहा कि ये विरोध “देश को कमजोर करने की कोशिश” हैं, कि “राष्ट्र की गरिमा, स्वतंत्रता और संप्रभुता” को ठेस नहीं पहुंचने दी जा सकती। उन्होंने प्रदर्शनकारियों को आरोपित किया कि कुछ “तत्व” (infiltration) आंदोलन में शामिल हो गए हैं जो हिंसा या उपद्रव फैलाना चाहते हैं। उन्होंने यह दावा किया कि सरकार का उद्देश्य सोशल मीडिया कंपनियों को कानूनी पंजीकरण कराना था और यह न कि पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना।
ओली ने मृतकों के लिए खेद प्रकट किया और मामले की जांच का वादा किया। उन्होंने यह कहा कि सरकार ने हिंसा और उपद्रव को नियंत्रित करने का प्रयास किया, और कि शांतिपूर्ण विरोधों को दबाने का इरादा नहीं था। पर दबाव बढ़ने के बाद, विरोधकारियों के नारों, हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता के चलते, ओली ने अंततः प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
इस समय विश्वसनीय ख़बरों में ये स्पष्ट नहीं है कि प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली “कहाँ भागे” हों — यानी कोई विश्वसनीय सूचना नहीं मिल रही है कि उन्होंने देश छोड़ दिया हो या किसी विशेष सुरक्षित स्थान पर चले गए हों। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया, और वहीं बताया गया है कि सरकार और सेना ने सुरक्षा कारणों से कुछ मंत्रियों को उनके निवास से स्थानांतरित किया। 


नेपाल युवाओं का प्रदर्शन हिंसा की प्रारंभिक पृष्ठभूमि


नेपाल की राजनीति पिछले कुछ वर्षों से अस्थिरता, पार्टियों के गठजोड़, और नेतृत्व संघर्षों से ग्रस्त है। के.पी. शर्मा ओली लंबे समय से लगातार विवादों में हैं। उनकी पुरानी नीतियाँ, पार्टी विभाजन और सत्ता का मालिकाना रवैया आलोचकों के लिए मुद्दा बन चुके थे। नेपाल की युवा पीढ़ी विशेषतः “Generation Z” (लगभग 1995-2010 में जन्मे) के बीच बेरोज़गारी, आर्थिक असमानता, राजनीतिक पारदर्शिता की कमी, तथा भ्रष्टाचार की शिकायतें लगातार बढ़ रही थीं। सोशल मीडिया के ज़रिए भ्रष्टाचार और नेताओं की पारिवारिक जीवन-शैली को लेकर “nepo kids/nepo babies” जैसे शब्दों ने चर्चा बड़ाई थी, जिसमें ऐसा लगता था कि नेताओं के बच्चे या रिश्तेदार राजनीतिक सत्ता या पहुंच के ज़रिए विशेष सुविधाएँ प्राप्त कर रहे हैं।
इन स्थितियों के बीच सरकार ने समाज और मीडिया को नियंत्रित करने के उपाय अपनाने शुरू किये, जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए पंजीकरण (registration) की माँग शामिल थी। सरकार का कहना था कि यह कदम झूठी पहचान, ग़लत सूचनाएँ और ऑनलाइन भ्रष्टाचार को रोकने के लिए आवश्यक है। लेकिन विरोधियों का तर्क था कि यह सत्ता का दमन (suppression) है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of speech) पर अंकुश लगाने की कोशिश है।

आंदोलन का ट्रिगर: सोशल मीडिया प्रतिबंध


दिनांक: लगभग 4-5 सितंबर 2025 को नेपाल सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को पंजीकरण न कराने के कारण बंद करने का निर्णय लिया। सरकार का तर्क था कि ये प्लेटफार्म नियमन (regulation) से बाएँ हैं, कुछ गैर-पंजीकृत हैं और गलत सूचनाएँ फैलाते हैं। 


युवा प्रतिक्रिया, “Gen Z” आंदोलन की शुरुआत


इस निर्णय को युवा वर्ग ने सरकारी सेंसरशिप के रूप में लिया। नेट-युवा (Internet users, छात्र-छात्राएँ) ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन माना। सोशल मीडिया पर “nepo kids / nepo babies”‐विरोधी हैशटैग तेज़ी से वायरल हुए, जहाँ नेताओं के बच्चों की ऐशो-आशफ़ीश और उनके जीवन-शैली की आलोचना हुई। 

घटनाक्रम: आंदोलन की तीव्रता और हिंसक मोड़



सरकार ने जब सोशल मीडिया प्रतिबंध लगाया, तो प्रतिक्रिया धीरे-धीरे वृहद हुई। छात्रों ने स्कूल / कॉलेज की यूनिफ़ॉर्म में सड़कों पर आख़िर निकलना शुरू किया। काठमांडू में संसद के निकट प्रदर्शन हुए, पुलिस बैरीकेड लगाए। कुछ प्रदर्शनकारी बैरीकेड तोड़कर संसद की ओर जाने की कोशिश करने लगे। 

पुलिस कार्रवाई, हिंसा और मौतें 


पुलिस ने आंसू गैस, वाटर कैनन, रबर बुलेट या ज़रूरत पड़ी तो गोली चलाने की घटनाएँ भी हुईं। कई लोगों को चोटें आई। कुछ स्थानों पर पुलिस की कार्रवाई के दौरान मृत्युओं की सूचना है। दर्जनों लोगों की मौतों और घायलों की खबरें सामने आ रही है। खबरों के मुताबिक सैंकड़ों लोग घायल हुए। विभिन्न समाचारों में 300 से ऊपर के घायल होने की रिपोर्ट की है। 


नेपाल युवा आन्दोलन की अन्य प्रतिक्रियाएँ


विभिन्न शहरों में कर्फ्यू लगाया गया — काठमांडू, ललितपुर, भक्तपुर सहित अन्य। स्कूल-कॉलेजों को बंद किया गया, शोरुचालन और सार्वजनिक गतिविधियाँ प्रभावित हुईं। 

के.पी. शर्मा ओली की भूमिका और प्रतिक्रिया


ओली सरकार ने शुरुआत में सोशल मीडिया प्रतिबंध की ज़िम्मेदारी ली, कहा कि यह कानून और राष्ट्र की गरिमा को बनाए रखने के लिए जरूरी कदम था। 
उन्होंने प्रदर्शनकारियों को “Gen Z troublemakers” की तरह संबोधित किया। बढ़ती हिंसा और दबाव के बाद सरकार ने प्रतिबंध हटाने की घोषणा की। लेकिन विरोध शांत नहीं हुआ; जनता, युवा और विपक्ष ओली से इस्तीफे की माँग करने लगे। 


परिणाम: ओली का इस्तीफा और अन्य बदलाव


इस्तीफा: के.पी. शर्मा ओली ने 9 सितंबर 2025 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के पीछे मुख्य कारण जनाक्रोश, बढ़ती मौतें, राजनीतिक तनाव, और सोशल मीडिया प्रतिबंध के प्रति व्यापक विरोध था। सरकार ने सोशल मीडिया प्रतिबंध वापस लिया। तथा कुछ मंत्री और गृहमंत्री ने अपनी ज़िम्मेदारी लेने के लिए पद छोड़ा ।

मांगें: सिर्फ सोशल मीडिया प्रतिबंध नहीं, और भी मुद्दे


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, राजनीतिक भ्रष्टाचार, नेताओं और उनके परिवारों की ज़िंदगी के विशेष रूपों पर सार्वजनिक जवाबदेही की माँगें, जीवन स्तर में सुधार और पारदर्शिता, न्याय व्यवस्था, सरकारी धन के उपयोग की समीक्षा आदि मुख्य बातें रहीं।
नेपो किड्स / नेपो बेबीज़ के ख़िलाफ़ नाराज़गी इस बात से है कि कैसे राजनीतिक परिवारों के बच्चे अक्सर संपत्ति, विदेश यात्रा, धनी वस्तुओं (ब्रांडेड कपड़े, महंगी गाड़ियों आदि) का उपयोग दिखाते हैं, जबकि आम जनता आर्थिक संकट से जूझ रही है। युवा वर्ग ने राजनीतिक नेतृत्व में परिवर्तन एवं भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई की माँग की। 

जन आंदोलन और राजनीतिक बदलावों में जो चुनौतियाँ आई सामने 


1. उच्च हिंसा और मानव जीवन का नुकसान: प्रदर्शन की शुरुआत शांतिपूर्ण हो सकती है, लेकिन हिंसक मोड़ लेना और पुलिस-प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष, नागरिक हानि का कारण बनता है।

2. राजनीतिक अस्थिरता: सरकारों का अक्सर अस्थिर होना, प्रधानमन्त्री परिवर्तित होना, गठबंधन बदलना राजनीतिक विश्वास में कमी लाता है।

3. आर्थिक दबाव: नेपाल पहले से ही विकासशील अर्थव्यवस्था है; प्रदर्शन, कर्फ्यू, बंद-व्यवस्था आदि से व्यापार, रोज़गार, पर्यटक उद्योग और रोज़मर्रा की गतिविधियों पर असर होता है।

4. मीडिया और संवाद का संकट: सरकारों द्वारा सोशल मीडिया प्रतिबंध लगाना, सूचना बाधा (information blackout) की स्थिति युवाओं को और अधिक क्रोधित करती है।

5. आगे की कार्रवाई की अस्पष्टता: इस्तीफा लेना एक बड़ा कदम है, लेकिन उसके बाद नया नेतृत्व, चुनाव, भ्रष्टाचार जांच, न्यायिक कार्रवाई आदि को लेकर परिस्थिति कैसे संभालेगी – यह अब देखना है।

6. संघर्ष की दिशा: क्या आंदोलन केंद्र सरकार, सिर्फ नेताओं पर है, या प्रणालीगत बदलाव की माँग है? अगर माँगें सिर्फ कुछ राजनीतिक हस्तियों पर कार्रवाई की हों, तो परिवर्तन सतही हो सकता है।

राजनीतिक विश्लेषण: ओली से आगे


ओली का करियर: पहले भी उन्होंने प्रधानमन्त्री के रूप में कई गठबंधन बनाए और तोड़े हैं, संविधान निर्माण, संघीयता आदि मुद्दों पर विवादों में रहे हैं। उनकी अपनी पार्टी CPN-UML के भीतर और बाहर विरोधी शक्तियाँ हमेशा बनी हुई थीं।
सत्ता संतुलन: नेपाल में राजनीतिक दलों के बीच बराबरी का संतुलन नहीं है; सत्ताधारी और विरोधी दलों के बीच गठबंधन बदलने की संभावना बनी हुई है।
अंतरराष्ट्रीय संदर्भ: नेपाल की भौगोलिक स्थिति, भारत-चीन के बीच संतुलन, शरणार्थी मुद्दों और सीमा विवादों की भूमिका भी है। ये विषय भी अक्सर आंतरिक राजनीति में उपयुक्त बहस बने रहते हैं।

सोशल मीडिया प्रतिबंध हटा लिया गया है। ओली ने दिया इस्तीफा


जनता और युवाओं का आंदोलन जारी है; सिर्फ सरकार बदलने से उनकी तमाम माँगें पूरी नहीं होंगी। उन्हें न्याय, भ्रष्टाचार की जांच, सार्वजनिक जवाबदेही, कम्युनिटी स्तर पर बदलाव, और संपत्ति स्वচ্ছता (asset transparency) चाहिए। सुरक्षा दलों की भूमिका, कर्फ्यू लागू करना, आर्थिक एवं सामाजिक अस्थिरता जैसे प्रभाव अब सामने आ रहे हैं। नागरिक सुविधाएँ प्रभावित हो रही हैं। 


नेपाल में आगे की संभावनाएँ


नेपाल का Gen Z आंदोलन सिर्फ एक सोशल मीडिया प्रतिबंध के विरोध में शुरू हुआ, लेकिन वह जल्दी ही व्यापक राजनीतिक असंतोष, कर-पोंच भ्रष्टाचार, राजनीतिक परिवारों की विशेष स्थिति और अपेक्षाकृत विकास की असमानता के खिलाफ बन गया।

ओली का इस्तीफा एक महत्वपूर्ण मोड़ है 


 यह दिखाता है कि लोकतांत्रिक दबाव, सार्वजनिक प्रतिक्रिया, और युवा आंदोलनों की ताकत कितनी बड़ी हो सकती है। लेकिन राजनीति में बदलाव सिर्फ नेतृत्व बदलने से नहीं होता। नीचे कुछ संभावनाएँ और सुझाव हैं कि नेपाल को आगे कैसे बढ़ना चाहिए:
संपत्ति और धन की जांच: राजनीतिक नेता और उनके परिवार की संपत्ति की पारदर्शी जांच हो। न्यायिक आयोग या जांच समिति हो जिसमें नागरिक समाज और न्यायपालिका शामिल हो।
युवा सहभागिता: युवाओं को सरकारी और राजनीतिक निर्णय-प्रक्रियाओं में शामिल किया जाए, न केवल विरोध में बल्कि नीति निर्माण में।
स्वतंत्र न्यायपालिका और मीडिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो। अभिव्यक्ति की आज़ादी, सूचना तक पहुंच, सोशल मीडिया नियमावली निष्पक्ष हो।
विकास वृद्धि और रोज़गार सृजन: युवा बेरोज़गारी एक बड़ा कारण है असंतोष का। आर्थिक योजनाओं, निजी निवेश, शिक्षा-व्यवस्था सुधार और कौशल विकास कार्यक्रमों को मजबूत किया जाए।
राजनीतिक जवाबदेही और सिस्टम सुधार: सिर्फ व्यक्तियों की जगह सिस्टम को सुधारना ज़रूरी है — भ्रष्टाचार रोकने के लिए कानूनों का पालन, आचार संहिता, सार्वजनिक धन का उपयोग पारदर्शी होना चाहिए।
समझौता और संवाद: सरकार, विपक्ष, नागरिक समाज और आंदोलन के प्रतिनिधियों के बीच संवाद की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। शक्ति संतुलन, संवैधानिक प्रावधानों का सम्मान और लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली की मजबूती महत्वपूर्ण है।


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