Luni river लूणी नदी
राजस्थान, जिसे मरुस्थलीय प्रदेश भी कहा जाता है, अपनी भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की जलवायु शुष्क है तथा जलस्रोत सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। ऐसे में नदियाँ राजस्थान के जीवन और संस्कृति का आधार बनती हैं। राजस्थान की पश्चिमी मरुस्थलीय भूमि में बहने वाली लूणी नदी (Luni River) इस क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है।लूनी नदी का पानी बालोतरा तक मीठा होता है और उसके बाद खारा होता जाता है, जिससे यह 'आधी मीठी, आधी खारी' नदी कहलाती है। इसे राजस्थान की एकमात्र प्रमुख अंतःस्थलीय नदी भी कहा जाता है। लूणी नदी की उत्पत्ति, प्रवाह, भौगोलिक महत्व, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पक्ष, प्रदूषण और संरक्षण से संबंधित पहलुओं का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
लूणी नदी की कुल लंबाई 495 कि॰मी॰ है। यह लंबी धारा वाली इस क्षेत्र की एकमात्र प्रमुख नदी है और यह सिंचाई का एक अनिवार्य स्रोत है। राजस्थान में इस की लंबाई 330 कि॰मी॰ है।
लूणी नदी का परिचय
लूणी नदी राजस्थान की सबसे लंबी लवणीय अंतःस्थलीय नदी है। इसका अधिकांश प्रवाह थार मरुस्थल के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में होता है। इस नदी का नाम "लूणी" शब्द से पड़ा है, जिसका अर्थ है "लवणीय"। वास्तव में इस नदी का जल कुछ दूरी तक मीठा रहता है, लेकिन रेगिस्तानी क्षेत्रों से होकर बहने के कारण इसका पानी आगे चलकर खारा और लवणीय हो जाता है। लूनी नदी की शुरुआती दो धाराएँ सागरमती और सरस्वती हैं, जो अजमेर जिले में पुष्कर घाटी के पास अरावली पर्वत श्रृंखला से निकलती हैं। ये दोनों धाराएँ मिलकर गोविंदगढ़ के पास मिलती हैं, जिसके बाद नदी को 'लूनी' के नाम से जाना जाता है।
लूणी नदी का उद्गम
लूणी नदी का उद्गम अरावली पर्वतमाला के दक्षिण-पश्चिम भाग में अजमेर जिले की नाग पहाड़ियों से होता है।
उद्गम स्थल को "नाग पहाड़" या "नागपहाड़ी" कहा जाता है।
यहाँ से निकलकर यह नदी दक्षिण-पश्चिम की ओर बहना प्रारंभ करती है।
प्रारंभिक भाग में इसे सागरमती या सागरमती नदी के नाम से भी जाना जाता है।
लूणी नदी का प्रवाह क्षेत्र
लूणी नदी का प्रवाह लगभग 495 किलोमीटर लंबा है।
यह नदी अजमेर से निकलकर पाली, जोधपुर, बाड़मेर, पाली, जालोर और जैसलमेर जिलों से होकर बहती है। आगे चलकर यह नदी कच्छ के रण (गुजरात) के लवणीय दलदली क्षेत्र में जाकर समाप्त हो जाती है। इसका कोई स्थायी सागर या महासागर संगम नहीं है।
लूणी नदी के मुख्य सहायक नदियां
लूनी नदी में 10 बाईं ओर से और 1 दाईं ओर से सहायक नदियाँ मिलती हैं, जिसमें जवाई, सुकड़ी, गुहिया, बांडी, लीलड़ी, खारी और जोजड़ी प्रमुख हैं। जोजड़ी लूनी नदी की एकमात्र दाईं ओर की सहायक नदी है।
लूनी नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ:
बाईं ओर से मिलने वाली नदियाँ: लीलड़ी, सुकड़ी, गुहिया, जवाई, बांडी, खारी, सागी, और मिश्री।
दाईं ओर से मिलने वाली नदी: जोजड़ी।
1.जवाई नदी
2.सुखड़ी(सुकड़ी )नदी
3.मीठडी नदी
4.बांडी (हेमावास के नाम से भी जानी जाती है)
5.गुहिया नदी
6.जोजरी नदी
7.खारी नदी
8.सागी नदी
9.लीलडी ( दोधारी)नदी
10.जोजरी नदी
लूणी नदी की सहायक नदियों पर विस्तृत जानकारी
राजस्थान की पश्चिमी मरुस्थलीय भूमि में बहने वाली लूणी नदी राज्य की प्रमुख अंतःस्थलीय नदियों में से एक है। यह अजमेर जिले की नागपहाड़ी से निकलकर लगभग 495 किमी बहती है और कच्छ के रण (गुजरात) में लुप्त हो जाती है। लूणी नदी अपने मार्ग में कई सहायक नदियों को समाहित करती है। इन सहायक नदियों ने न केवल लूणी के जल प्रवाह को समृद्ध किया है, बल्कि अपने-अपने क्षेत्रों में जीवन, कृषि, अर्थव्यवस्था और संस्कृति को भी प्रभावित किया है।
लूणी नदी की सहायक नदियाँ
राजस्थान की पश्चिमी शुष्क भूमि की जीवनरेखा कही जाने वाली लूणी नदी न केवल अपने बहाव क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध है बल्कि इसकी अनेक सहायक नदियाँ भी इस क्षेत्र की जल प्रणाली को संजीवनी प्रदान करती हैं। ये सहायक नदियाँ अरावली पर्वतमाला की पश्चिमी ढलानों से निकलकर लूणी में आ मिलती हैं। यहाँ लूणी की प्रमुख सहायक नदियों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है –
1. जोजरी (मिट्ठी जोजरी)
जोजरी नदी को लूणी की सबसे महत्त्वपूर्ण सहायक नदी माना जाता है।
इसका उद्गम नागौर जिले के परबतसर क्षेत्र से होता है।
यह पश्चिम दिशा में बहते हुए जोधपुर जिले में प्रवेश करती है और लूणी नदी में मिलती है।
इसे "मिट्ठी जोजरी" भी कहा जाता है क्योंकि इसका जल अन्य सहायक नदियों की तुलना में कम लवणीय होता है।
2. गुहिया नदी
गुहिया नदी का उद्गम पाली जिले के देसूरी तहसील के पास अरावली पर्वत से होता है।
यह पाली जिले से होकर बहती है और जोधपुर जिले में लूणी में समाहित हो जाती है।
गुहिया नदी का जल अपेक्षाकृत मधुर होता है तथा सिंचाई में सहायक है।
3. सुकरी नदी (हेमावास एवं पाली क्षेत्र)
सुकरी नदी का उद्गम पाली जिले के सुमेरपुर के पास अरावली से होता है।
यह बाली तथा सुमेरपुर क्षेत्रों से बहते हुए लूणी में मिलती है।
इसके मार्ग पर हेमावास बांध निर्मित है, जिससे स्थानीय सिंचाई व पेयजल की सुविधा होती है।
यह लूणी की एक प्रमुख और जलवाहित सहायक नदी है।
4. लीलडी (लोलारी) नदी
लोलारी नदी का उद्गम पाली जिले के पहाड़ी क्षेत्रों से होता है।
इसका प्रवाह छोटा है, किंतु यह वर्षा ऋतु में लूणी नदी को जल प्रदान करती है।
5. (बांडी) बंदी नदी (हेमावास क्षेत्र)
बांडी नदी भारत के राजस्थान राज्य में लूनी नदी की एक सहायक नदी है. यह नदी खारी और मिठारी नदियों के संगम से बनती है और राजस्थान के पाली जिले से होकर बहती है, जिस पर हेमावास बांध स्थित है। बंदी नदी का उद्गम भी अरावली से होता है। बांडी नदी सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है, जिस कारण इसे केमिकल रिवर भी कहा जाता है।
यह हेमावास क्षेत्र से बहते हुए लूणी में मिलती है।
बंदी नदी भी वर्षा आधारित है और इसका महत्व स्थानीय सिंचाई में देखा जाता है।
6. (मीठडी)मिथ्री नदी
मिथ्री नदी पाली जिले की एक सहायक धारा है।
इसका उद्गम अरावली की पहाड़ियों से होता है और यह पाली क्षेत्र से गुजरती है।
यह भी बरसाती नदी है, लेकिन लूणी के प्रवाह को बढ़ाती है।
7. जवाई नदी
जवाई नदी अरावली पर्वतमाला से निकलती है और पाली-जालोर जिले से बहती है।
इस पर प्रसिद्ध जवाई बांध निर्मित है, जो राजस्थान का एक बड़ा बांध है।
यह नदी लूणी की दक्षिणी दिशा से मिलती है।
जवाई नदी की बदौलत पाली और जालोर क्षेत्र में सिंचाई एवं पेयजल की अच्छी सुविधा है।
8. खारी बंदी नदी
यह लूणी की एक छोटी सहायक नदी है, जो वर्षा ऋतु में सक्रिय रहती है।
इसका प्रवाह अस्थायी है, लेकिन स्थानीय जल संग्रहण में भूमिका निभाता है।
9. सुकरी बंदी(बांडी)
सुकरी नदी की एक शाखा धारा है जिसे "सुकरी बंदी" कहा जाता है।
यह लूणी में वर्षा ऋतु में जलप्रवाह बढ़ाती है।
10. सागी नदी या सुगी नदी
यह नदी जालौर जिले में जसवंतपुरा की पहाड़ियों से निकलती है और बाड़मेर जिले के गांधव के पास लूनी से मिलती है।
सुगी नदी लूणी की अपेक्षाकृत छोटी सहायक नदी है।
यह वर्षा आधारित धारा है, जो स्थानीय जल संग्रहण एवं भूगर्भीय जल को प्रभावित करती है।
लूणी नदी और इसकी सहायक नदियों का महत्व
1. कृषि – लूणी और उसकी सहायक नदियाँ स्थानीय खेतिहर किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराती हैं।
2. पेयजल – जवाई और सुखड़ी जैसी नदियाँ कई कस्बों के लिए पेयजल स्रोत हैं।
3. पशुपालन – रेगिस्तानी क्षेत्र में पशुओं के लिए यह जलधाराएँ जीवनरेखा हैं।
4. उद्योग – पाली और जोधपुर के उद्योग इन नदियों के जल का उपयोग करते आए हैं।
5. संस्कृति – लोककथाओं, लोकगीतों और सामाजिक जीवन में इन नदियों का विशेष स्थान है।
लूणी नदी के जल और लवणीयता की विशेषता
लूणी नदी का जल अपने प्रवाह के प्रारंभिक हिस्से में मीठा होता है और कृषि योग्य भी रहता है। अजमेर और पाली जिलों के आसपास का पानी पीने योग्य माना जाता है। परंतु जैसे-जैसे यह नदी पश्चिमी मरुस्थल और लवणीय मृदा वाले क्षेत्रों से गुजरती है, इसका पानी खारा (लवणीय) होता जाता है। बाड़मेर और जालोर क्षेत्रों में पहुँचने तक इसका पानी सिंचाई और पीने योग्य नहीं रह जाता। यही कारण है कि इसे लवणीय नदी भी कहा जाता है।
लूणी नदी का ऐतिहासिक महत्व
इतिहास में लूणी नदी का उल्लेख स्थानीय राजवंशों और समाजों के जीवन से जुड़ा मिलता है।
प्राचीन काल से इस नदी के किनारे बसे गाँव और कस्बे व्यापार, खेती और पशुपालन के केंद्र रहे हैं।
पाली नगर जो कभी व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण केंद्र था, लूणी नदी के किनारे स्थित है।
लोकगीतों और लोककथाओं में भी लूणी का उल्लेख मिलता है।
लूणी नदी का आर्थिक महत्व
लूणी नदी मरुस्थल क्षेत्र के लिए जीवनरेखा जैसी है।
कृषि – शुरुआती भाग में जहाँ इसका जल मीठा है, वहाँ किसान इसका उपयोग फसल सिंचाई के लिए करते हैं।
पशुपालन – राजस्थान के पश्चिमी भाग में पशुपालन मुख्य व्यवसाय है। लूणी के जल से पशुओं की प्यास बुझाई जाती है।
नमक उत्पादन – इसके लवणीय जल का उपयोग नमक निर्माण में किया जाता है।
स्थानीय आजीविका – नदी के किनारे बसे लोग जल, रेत और खेती पर आधारित अपनी जीविका चलाते हैं।
लूणी नदी की पारिस्थितिकी और जैव विविधता
लूणी नदी के आसपास बबूल, खेजड़ी और कंटीले पौधों की वनस्पति पाई जाती है।
यहाँ ऊँट, गाय, भेड़-बकरी जैसे पशुओं के लिए जल स्रोत उपलब्ध होता है।
यह नदी मरुस्थलीय पक्षियों और जीवों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
प्रदूषण और चुनौतियाँ
लूणी नदी भी समय के साथ प्रदूषण और पर्यावरणीय समस्याओं का शिकार हुई है।
1. औद्योगिक अपशिष्ट – पाली और जोधपुर जैसे शहरों से निकलने वाला कपड़ा उद्योग का अपशिष्ट सीधे लूणी में डाला जाता है।
2. भूजल का दोहन – लूणी बेसिन में अंधाधुंध भूजल खींचने से नदी का जल स्तर गिरा है।
3. लवणीयता की समस्या – प्राकृतिक रूप से ही यह नदी लवणीय है, लेकिन मानवीय गतिविधियों ने इसमें और अधिक प्रदूषण घोल दिया है।
4. रेत खनन – नदी के किनारे अवैध रेत खनन ने इसके प्रवाह को बाधित किया है।
संरक्षण और प्रबंधन के प्रयास
लूणी नदी के संरक्षण के लिए सरकार और स्थानीय संगठन कई प्रयास कर रहे हैं।
पाली जिले में उद्योगों के अपशिष्ट के शोधन हेतु कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) स्थापित किए गए हैं।
वृक्षारोपण और वनीकरण को बढ़ावा देकर नदी क्षेत्र की हरियाली बनाए रखने की कोशिश की जा रही है।
पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियाँ जैसे तालाब, नाड़ी, बावड़ी आदि को पुनर्जीवित किया जा रहा है।
स्थानीय समाज और पंचायतें भी लूणी के जल को शुद्ध बनाए रखने में योगदान दे रही हैं।
लूणी नदी का सांस्कृतिक महत्व
लूणी नदी केवल जल का स्रोत नहीं, बल्कि लोकजीवन और संस्कृति का भी हिस्सा है। राजस्थानी लोकगीतों और लोककथाओं में इसका उल्लेख आता है। मेलों और उत्सवों में भी इस नदी का महत्व देखने को मिलता है।
नदी के किनारे बसे कस्बों में आज भी लोकजीवन इस नदी से गहराई से जुड़ा हुआ है।
भविष्य की संभावनाएँ
यदि लूणी नदी के संरक्षण और प्रबंधन को सही दिशा दी जाए तो यह मरुस्थलीय राजस्थान के लिए अमृतधारा साबित हो सकती है। स्वच्छ जल की आपूर्ति से यहाँ की कृषि व्यवस्था में सुधार होगा। नमक और खनिज उद्योग को स्वच्छ तरीके से बढ़ावा दिया जा सकता है। पर्यटन की दृष्टि से भी लूणी नदी और इसके किनारे बसे कस्बों का विकास किया जा सकता है।
लूणी नदी राजस्थान के शुष्क और मरुस्थलीय भाग की जीवनरेखा है। यह केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि मरुभूमि के लोगों की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और जीवनशैली से जुड़ी हुई है। अरावली की गोद से निकलकर कच्छ के रण तक पहुँचने वाली यह नदी अपनी लवणीय धारा के बावजूद जीवन को पोषित करती है। प्रदूषण, लवणीयता और मानवीय हस्तक्षेप ने इसके अस्तित्व को चुनौती दी है, किंतु उचित संरक्षण और जागरूकता से लूणी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवन का आधार बनी रह सकती है।
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