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Wednesday, September 17, 2025

पृथ्वी केवल मनुष्यों की ही नहीं है,सभी जीवों का है समान अधिकार

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पृथ्वी पर सभी जीवों का समान प्राकृतिक अधिकार 


यह पृथ्वी लगभग 87 लाख (8.7 मिलियन) जीव प्रजातियों की है इनमें एक प्रजाति हमारी होमो सेपियन्स की है, पृथ्वी पर जितना हक हमारा है उतना ही सभी प्रजातियों का है।।मानव ने पृथ्वी पर अपने विकास और सुविधाओं की दौड़ में अनेक तरीकों से अन्य जीव-जंतुओं का हक छीना है। जंगल काटकर शहर, गाँव और उद्योग बसाए गए। नदियाँ और झीलें सुखाकर कृषि भूमि बनाई गई इस प्रकार जीव जन्तुओं के प्राकृतिक आवास पर कब्ज़ा किया। इससे जंगली जानवरों और पक्षियों का घर छिन गया। मनोरंजन, व्यापार या भोजन के लिए जानवरों का शिकार किया गया, इससे कई जीव प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं या विलुप्त होने के कगार पर हैं। फैक्ट्रियों और गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ, प्लास्टिक, रसायन, तेल आदि ने हवा, पानी और मिट्टी को ज़हरीला बना दिया इससे जानवरों के जीवन पर सीधा असर पड़ा। मानव की गतिविधियों से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हुआ। इसका असर ध्रुवीय भालू, पेंगुइन, प्रवासी पक्षियों और अनेक प्रजातियों पर पड़ा। इतना ही नहीं मानव जाति ने दूध, मांस, चमड़ा, ऊन आदि के लिए जंगली और पालतू जानवरों का अत्यधिक शोषण किया। नदियों को मोड़कर, बाँध बनाकर पानी पर इंसानों ने एकाधिकार बना लिया यह सभी स्रोत वास्तव में प्रकृति ने सभी जीव प्रजातियों को समान रूप से उपलब्ध करवाएं हैं।
मानव ने प्राकृतिक चारागाहों पर खेती और उद्योगों के लिए जंगलों पर कब्ज़ किया परिणामस्वरूप जंगली और पालतू जानवरों को पर्याप्त भोजन-पानी मिलना बंद हो गया। हम जानते हैं कि पृथ्वी पर हर एक जीव हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में बुद्धजीवी मानव अपने स्वार्थ हेतु अन्य जीव जन्तुओं के हक और हिस्से को नजरंदाज करता रहा है। दुर्भाग्यवश मानव के अलावा अन्य किसी जीव जन्तु के पास अधिकारिक तौर की भाषा नहीं है जिससे वह अपने हक के लिए वह न्याय मांग सके।

पृथ्वी केवल मनुष्यों की ही नहीं है, बल्कि यह सभी प्राणियों का साझा घर है। जिस प्रकार मनुष्य को जीने, खाने, पीने और सुरक्षित रहने का अधिकार है, उसी प्रकार अन्य प्राणियों को भी यह अधिकार प्राप्त है। पक्षियों को खुले आकाश में उड़ने का, पशुओं को जंगल और चारागाहों में विचरण करने का तथा जलचर प्राणियों को नदियों और समुद्रों में स्वतंत्रता से रहने का हक है। उन्हें शुद्ध वायु, स्वच्छ जल और प्राकृतिक भोजन पाने का समान अधिकार है। प्रत्येक जीव को भयमुक्त होकर जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए।

दुर्भाग्य से मनुष्य ने अपनी स्वार्थपूर्ण गतिविधियों से अन्य जन्तुओं के अधिकारों का हनन किया है। जंगल काटकर, नदियों को प्रदूषित कर और अत्यधिक शिकार करके प्राणियों के प्राकृतिक घर और भोजन छीन लिए हैं। किंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रकृति का संतुलन सभी जीव-जंतुओं की सहभागिता से ही संभव है। यदि हम अन्य प्राणियों के हक को पहचानें और उनका संरक्षण करें, तभी पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता बनी रह सकती है।

अन्य जीवों को मानव की दखलंदाजी 


जंगली जानवरों तथा कुछ जहरीली जीवों द्वारा मनुष्य को जरा सा नुकसान पहुंचाने पर हम उन्हें त्वरित सजा के रूप में उनकी हत्या कर देते हैं जबकि वे मनुष्य को कभी भी सामान्य परिस्थितियों में नुकसान नहीं पहुंचाते हैं कभी भी दुश्मनी और साजिशें नहीं करते हैं लेकिन दुसरी तरफ मानव अपने अत्याधुनिक विकास में हर क्षण असंख्य जीवों की हत्या का जिम्मेदार है अगर हर दिन जंगलों,सड़कों, नदियों और खुले आसमान में पशु पक्षियों और अन्य जीव जन्तुओं के मौत के केस दर्ज किए जाए तो हमारी मानव प्रजाति सबसे बड़ी दोषी साबित होगी। अगर जंगली और पालतू जानवरों के प्राकृतिक अधिकारों के हनन की बात को कानूनी रूप से रखा जाए तो मानव सभ्यता सबसे बड़ी कुख्यात मुजरिम साबित होगी। सबसे बड़ा सवाल यह कि अपने प्राकृतिक आवासों के को जाने पर वहां विचरण करने वाले जीव जन्तुओं को हम आवारा की संज्ञा देकर उनके हक और अधिकारों के रास्ते बन्द कर देते हैं। हमारी मानव जाति अपने विकास के शुरूआती दौर में हजारों वर्षों तक जंगलों में आवारा थी तब किसी जीव ने हमें आवारा बताकर पिंजरों में बंद नहीं किया किसी भी प्रजाति ने मानव जाति की जनन प्रकिया में बाधा उत्पन्न नहीं की तो सबसे बड़ा सवाल यह कि इस पृथ्वी पर मानव जाति को यह अधिकार किसने दिया कि वे अन्य जीव जन्तुओं का जैविक अधिकार अपने स्वार्थ हेतु तय अपने तौर-तरीकों से तय करेगी? दरअसल मानव जाति ने प्रकृति पर अन्यायपूर्ण अधिकार किया है विभिन्न प्रकार के प्रदुषण से पृथ्वी को अनियमित ढ़ंग से उपभोग किया जिससे पृथ्वी ग्रह संकट की स्थति में है। जंगली जानवर जिसमें अधिकांश कुत्तों की प्रजाति ने अपने प्राकृतिक आवास खो देने पर अपनी उत्तरजीविता बनाएं रखने के लिए मानव बस्तियों में पालतू जानवरों के रूप में विचरण किया तो अब वे मनुष्य के लिए असुविधाजनक बन गये। कभी हमें अन्य जीव जन्तुओं की ओर से खुद से सवाल करना चाहिए कि वाकई इस पृथ्वी ग्रह पर इनका हक और अधिकार है उसको लेकर हम कितने आश्वस्त हैं तथा कितने जिम्मेदार है? क्या हमने औद्योगिक कारखानों के लिए अंधाधुंध जंगलों की कटाई के समय वहां के असंख्य जीवों के पुनर्वास के लिए कोई विकल्प बनाएं रखा? इसलिए सबसे बड़ा सवाल मानव वर्ग को स्वयं से करना चाहिए कि असल में आवारा कौन है? आवारा की परिभाषा क्या है? समय रहते मानव जाति को जीवमंडल के सभी जीवों के हक और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी । क्योंकि प्रकृति के सर्वोच्च न्यायालय में अगर बेजुबान जन्तुओं का मुकदमा पेश हुआ तो मानव जाति इस जुर्म की गैर-जमानती अभियुक्त साबित होगी।

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