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हिन्दी दिवस |
आज का दिन भारतवर्ष के लिए गौरव की अनुभूति का दिन है क्योंकि आज हमारे देश की भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया। लेकिन आज हम हिन्दी भाषा के अब तक के सफर की कुछ विशिष्ट बातों का जिक्र करेंगे। तथा हम बात करेंगे किस प्रकार हम अपनी राजभाषा को भूलाते बिसराते जा रहें हैं।
यह भारतीयों के लिए गर्व का क्षण था जब भारत की संविधान सभा ने हिंदी को देश की आधिकारिक राजभाषा के रूप में अपनाया था। संविधान ने वही अनुमोदित किया और देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी आधिकारिक राजभाषा बन गई। 14 सितंबर, जिस दिन भारत की संविधान सभा ने हिंदी को अपनी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया, हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। कई स्कूल, कॉलेज और कार्यालय इस दिन महान उत्साह के साथ मनाते हैं।
विषय सूची |
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हिंदी दिवस की शुरुआत
हालांकि विश्व हिन्दी दिवस प्रति वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं।
हिंदी भी संस्कृत से निकली एक भाषा है लेकिन हिंदी का पहली बार इस्तेमाल फारसी शब्द ‘हिन्द’ से आया है, जिसका मतलब ‘सिंधु नदी की भूमि’ है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी को आधुनिक हिंदी काजनक कहा जाता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को आधुनिक हिन्दी साहित्य का पितामह कहा जाता है। आधुनिक काल में हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ भारतेन्दु काल से हुआ। वे भारतीय नव जागरण के अग्रदूत थे।
सन् 1947 में देश आजाद होने के बाद सबसे बड़ा प्रश्न था कि किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाया जाए। काफी विचार विमर्श करने के बाद 14 सितंबर सन् 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में किया गया है, जिसके अनुसार भारत की राजभाषा ‘हिंदी’ और लिपि ‘देवनागरी’ है। सन् 1953 से 14 सितंबर के दिन हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत हुई।
हिंदी सिर्फ भारत की और उसमें भी सिर्फ उत्तर भारत की भाषा है। ऐसा नहीं है भारत के आलावा हिंदी को मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद एंड टोबेगो, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में भी बोली और समझी जाती है।
हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने के बाद गैर हिंदी भाषी लोगों ने इसका विरोध किया, जिसके कारण अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा बनाया गया। हिंदी की सबसे अच्छी बात ये है कि यह समझने में बहुत आसान है, इसे जैसा लिखा जाता है इसका उच्चारण भी उसी प्रकार किया जाता है। हमारे देश में 77 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते, समझते और पढ़ते हैं। आधिकारिक काम-काज की भाषा के तौर पर भी हिंदी का उपयोग होता है।
गांधी जी ने हिंदी को जन मानस की भाषा कहा था। सन् 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में गांधी जी ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने को कहा था। जब हिंदी को राजभाषा के रुप में स्वीकार किया गया, तब देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने हिंदी के प्रति गांधी जी के प्रयासों को याद किया। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन के महत्व को देखते हुए इस दिन को हिंदी दिवस के रुप में मनाने को कहा था। भारत देश के नागरिक होने के नाते हम सबका कर्तव्य बनता है कि हम हिंदी को आगे बढ़ाने का प्रयास करें। अपने काम-काज की भाषा के रुप में हिंदी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
14 सितम्बर 1949 को हिन्दी के पुरोधा राजेन्द्र सिंहा का 50-वां जन्मदिन था, जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत लंबा संघर्ष किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किए।
हिंदी भाषा का इतिहास और प्राचीन रूप
हिन्दी शब्द की उत्पति सिन्धु-सिंध से हुई है, क्योंकि ईरानी भाषा में ‘स’ को ‘ह’ में उच्चारण जाता है । इस प्रकार हिन्दी शब्द वास्तव में सिन्धु शब्द का प्रतिरूप है । कालांतर में हिंद शब्द सम्पूर्ण भारत का पर्याय बना । इसी हिंद से हिन्दी शब्द बना ।
आज हम जिस भाषा को हिन्दी के रूप में जानते है, वह आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है । आर्य भाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत हैं, जो साहित्य की परिनिष्ठित भाषा थी । वैदिक भाषा में वेद, संहिता एवं उपनिषदों-वेदांत का सृजन हुआ है । वैदिक भाषा के साथ-साथ ही बोलचाल की भाषा संस्कृत थी, जिसे लौकिक संस्कृत कहा जाता है । संस्कृत का विकास उत्तरी भारत में बोली जाने वाली वैदिककालीन भाषाओं से माना जाता है । अनुमानतः आठवीं शताब्दी ई.पू. में इसका प्रयोग साहित्य में होने लगा था । संस्कृत भाषा में ही रामायण तथा महाभारत जैसे ग्रन्थ रचे गये । वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, अश्वघोष, भारवी, माघ, भवभूति, विशाख, मम्मट, दंडी तथा श्रीहर्ष आदि संस्कृत की महान विभूतियाँ है । इसका साहित्य विश्व के समृद्ध साहित्य में से एक है । संस्कृतकालीन आधारभूत बोलचाल की भाषा परिवर्तित होते-होते 500 ई.पू के बाद तक काफी बदल गई, जिसे पाली कहा गया । महात्मा बुद्ध के समय में पालि लोक भाषा थी और उन्होने पालि के द्वारा ही अपने उपदेशों का प्रचार-प्रसार किया । यह भाषा ईसा की प्रथम ईसवी तक रही ।
प्रथम ईसवी तक आते-आते पाली भाषा और परिवर्तित हुई, तब इसे प्राकृत की संज्ञा दी गई । इसका काल पहली ई. से 500 ई. तक है । पालि की विभाषाओं के रूप में प्राकृत भाषाये-पश्चिमी, पूर्वी, पश्चिमोत्तरी तथा मध्य देशी अब साहित्यिक भाषाओं के रूप में स्वीकृत हो चुकी थी, जिन्हें मागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, पैशाची, ब्रांचड़ तथा अर्धमागधी भी कहा जा सकता है ।
आगे चलकर प्राकृत भाषाओं के श्रेत्रीय रूपों से अपभ्रंश भाषाये प्रतिष्ठित हुई । इनका समय 500 ई. से 1000 ई. तक माना जाता है । अपभ्रंश भाषा साहित्य के मुख्यतः दो रूप मिलते है-पश्चिमी और पूर्वी । अनुमानतः 1000 ई. के आसपास अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से आधुनिक आर्य भाषाओं का जन्म हुआ । अपभ्रंश से ही हिंदी भाषा का जन्म हुआ । इस प्रकार विभिन्न भाषाओं और बोलियों का सफर तय करते हुए आज हमारी हिंदी भाषा वर्तमान स्वरूप में आई है।
हिंदी भाषा की बोलियां
हिंदी केवल खड़ी बोली (मानक भाषा) का ही विकसित रूप नहीं है बल्कि जिसमें अन्य बोलियां भी शामिल हैं जिन्हें खड़ी बोली भी शामिल हैं।
1. पूर्वी हिंदी जिसमें अवधी, बघेली तथा छत्तीसगढ़ी शामिल हैं।
2. पश्चिमी हिंदी में खड़ी बोली, ब्रज, बाँगरू (हरियाणवी), बुन्देली तथा कन्नौजी शामिल हैं।
3. बिहारी की प्रमुख बोलियाँ मगही, मैथिली तथा भोजपुरी हैं।
4. राजस्थानी की मेवाड़ी, मारवाड़ी, मेवाती तथा हाड़ौती बोलियाँ शामिल हैं। कुछ विद्वान मालवी, ढूंढाडी तथा बागडी को भी राजस्थानी की अलग बोलियाँ मानते है।
5. पहाड़ी की गढ़वाली, कुमाऊँनी तथा मंडियाली बोलियाँ हिंदी की बोलियाँ हैं।
इन बोलियों के मेल से बनी हिंदी को संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को भारत की राजभा स्वीकार किया। विभिन्न बोलियों के मेल से बनी हिंदी की भाषाई विविधता के कारण ही हिंदी के क्षेत्र उच्चारण में विविधता पाई जाती है।
हिंदी भाषा व्याकरण लिपि एवं वर्तनी
हिंदी व्याकरण हिंदी भाषा को शुद्ध रूप से लिखने और बोलने संबंधी नियमों की जानक देनेवाला शास्त्र है। किसी भी भाषा को जानने के लिए उसके व्याकरण को भी जानना बहुत आवश्यक होता है। हिंदी की विभिन्न ध्वनि, वर्ण, पद, पदांश, शब्द, शब्दांश, वाक्य, वाक्यांश आदि की विवेचना व्याकरण में किया जाता है।
भाषा की ध्वनियों को जिन लेखन चिह्नों में लिखा जाता है उसे लिपि कहते हैं, अर्थात् किसी भी भाषा की मौखिक ध्वनियों को लिखकर व्यक्त करने के लिए जिन वर्तनी चिह्नों का प्रयोग किया जाता है वह लिपि कहलाती है। संस्कृत, हिंदी, मराठी, कोंकणी (गोवा), नेपाली आदि भाषाओं की लिपि 'देवनागरी' है। इसी प्रकार अँगरेजी की 'रोमन', पंजाबी की 'गुरुमुखी' तथा उर्दू की लिपि फारसी है। भारत सरकार के अधीन केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने अनेक भाषाविदों, पत्रकारों, हिंदी सेवी संस्थानों तथा विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के सहयोग से हिंदी की वर्तनी का देवनागरी में एक मानक स्वरूप तैयार किया है जो सभी हिंदी प्रयोक्ताओं के लिए समान रूप से मान्य है।
संकट के दौर में हमारी हिंदी भाषा
आज का दिन 14 सितम्बर पूरे भारत में हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। आज के दिन हिंदी भाषा अकादमी तथा विभिन्न हिन्दी भाषा साहित्य संगठनों संस्थाओं तथा हिंदी प्रेमियों द्वारा इस दिन हिंदी भाषा पर आधारित कार्यक्रम, प्रतियोगिताएं, संगोष्ठी, सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं । हिंदी भाषा के महत्व और स्वरूप का वर्णन किया जाता है। हिंदी के प्रति जागरूकता और प्रेम का अहसास करवाया जाता है। लेकिन सबसे बड़ी बात है कि हम हिन्दुस्तानी लोग हिंदी भाषा की भाषाई एकता में कितने खरे उतरते हैं। हम हिन्दी भाषा के एकता सूत्र में कितने बंधे रहते हैं। यह सवाल अपने आप में विडम्बना उत्पन्न करता है । क्योंकि लम्बे इतिहास के बाद भी आज हिन्दी भाषा को वो स्थान नहीं दिया जो भारत जैसे भाषाई बहुल क्षेत्र में दिया जाना चाहिए। हम आज पाश्चात्य संस्कृति की आंधी में खो कर हिंदी भाषा के महत्व और उपयोगिता को भूल गए हैं। हालांकि हिंदी को राष्ट्रभाषा जरूर बनाया लेकिन हिंदी भाषा पर कुछ क्षेत्र एक मत नहीं हुए। भारत की पवित्र भाषा हिन्दी के अथाह सागर में सभी भारतियों को एकजुट होकर उतरना था तभी यह सागर अनेकता में एकता के रंग से सराबोर हो जाता लेकिन आज भी भारतीय राजकाज हो या अन्य कोई अवसर हमें कभी अंग्रेजी या कभी स्थानीय भाषा की गुंज कानो में सुनाई देती है। देश की अधिकांश कंपनियां अपने उत्पादों पर अंग्रेजी भाषा का का प्रयोग किया जाता है। हर दवा , खाद्यान्न उत्पादन आदि जन उपयोगी वस्तुओं की जानकारी हमें अंग्रेजी में मिलती है। जो आधे से ज्यादा भारतीयों के लिए पढ़ने और समझने योग्य नहीं है। अनेक स्थानीय बोलियों तथा भाषाई विविधता से उत्पन्न अलगाववादी विचारों के चलते हिंदी भाषा के सही ज्ञान की जगह अधकचरा कर दिया जाता है। जिससे न तो हिंदी भाषा का सही ज्ञान होता है ना ही अंग्रेजी का।
आज भारत में अपनी रोजमर्रा की बोल चाल में अंग्रेजी शब्दों को हिन्दी के साथ अधकूटा बना कर बुदबुदाना फैंशन बन गया है। कुछ अमीर लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलवाना बहुत बड़ा रूतबा समझते हैं। इसलिए फिल्म इंडस्ट्री हो या अमीर लोगो की बिरादरी सभी में अंग्रेजी बोलने का भूत सवार होता है वे अपनी जिंदगी में न तो कभी पूर्ण फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने में सक्षम तो होते ही नहीं है लेकिन साथ साथ में अपनी हिन्दी भाषा से कोसों दूर चले जाते हैं जिससे हिंदी के गूढ शब्द उनको फारसी के समान लगने लगते हैं।
कई कारण उत्तरदाई है जिससे हम हिन्दी की गहराई और उस विशाल शब्दकोश के मिठास से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। जिससे सबसे बड़ा कारण अंग्रेजी का टूटा-फूटा इस्तेमाल माल उत्पाद प्रिन्ट , शुद्ध हिंदी का प्रयोग न होना आदि अनेक कारण हैं जिसमें हमारी हिंदी भाषा के विशाल सागर के अक्षर रूपी मोतियों को खोया है। आज का बच्चा जब बोलने लगता है तब मोम,डेड से बोलना शुरू करेगा इससे हम कल्पना कर सकते हैं कि हम हमारी पीढ़ी को हिन्दी हस्तांतरण के लिए कितने तत्पर हैं। शहरों के छोटे बच्चें को जब "गाय" शब्द कहेंगे तब वह असंमजस में पड़ेगा क्योंकि उनको हमने केवल "काऊ" ही सुनाया है।
हिंदी भाषा के कमजोर होने का एक ही कारण है कि हम न तो हिंदी का शुद्ध रुप अर्जित करने में तत्पर हैं और न ही नवीन पीढ़ियों में शुद्ध हिंदी का हस्तांतरण करते हैं।
हिंदी दिवस मनाने की सार्थकता तभी है जब देश में हिन्दी भाषा का स्वरूप हर नागरिक के लबों पर होना चाहिए। हिंदी शब्दकोश हर हिन्दुस्तानी के ज़हन में होना चाहिए।
माना अंग्रेजी वैश्विक भाषा है इसका ज्ञान भी जरूरी है क्योंकि अधिकांश आयातित उत्पाद विदेशी होते हैं तो निसंदेह उन पर अंग्रेजी प्रिन्ट होगी। लेकिन पिघलते ग्लेशियर से उफनते अंग्रेजी भाषा रूपी सागर में हिन्दी द्वीप को डूबो देना भारतीय लोगों की बड़ी भूल होगी। क्योंकि हिंदी हमारी भाषा ही नहीं देश की एकता-अखंडता की माला है जिसने अनेक विभिन्नता रूपी मोतियों को पिरोया है। पोषित किया है। उत्थान किया है।
इसलिए हिंदी है तो हिन्द है।
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