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पीएम मोदी |
भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव के बीच भारतीय प्रधानमंत्री मोदी का लद्दाख दौरा एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि इस सम्बोधन से दोनों देशों के आपसी तनाव पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। यह यात्रा भारत चीन युद्ध की अटकलों को विराम दे सकती है । भारतीय नागरिकों के लिए यह रोचक बात क्योकि भारतीय मीडिया द्वारा युद्ध की बात कह कर देश में खौफ पैदा कर दिया था। लेकिन माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपने शानदार भाषण में सैनिकों का हौसला अफजाई करते हुए सभी देशों को विस्तारवादी नीति को विनाशकारी बताकर शान्ती और सहयोग की अपील की। तथा चीन का नाम भी नहीं लिया। क्योंकि भारत शान्ति के पथ पर चला आया है और चलता रहेगा। जब तक कि अन्य कोई देश आक्रामक रुख न अपनाएं।
प्रधानमंत्री मोदी का सैना को संबोधन
प्रधानमंत्री मोदी ने सैना को संबोधन करते हुए कहा कि जब-जब वह राष्ट्र रक्षा से जुड़े फैसले के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले दो माताओं को याद करते हैं। पहली हमारी भारत माता, दूसरी वे वीर माताएं जिन्होंने सैनिकों को जन्म दिया। इसके बाद पीएम ने कहा कि जवानों के सुरक्षा उपकरणों और हथियारों की हरसंभव मदद की कोशिश सरकार कर रही है। मोदी बोले, हम सशस्त्र बलों की जरूरतों पर पूरा ध्यान दे रहे हैं।
दुश्मनों ने देखा आपका जोश और गुस्सा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवानों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि उनकी भुजाएं चट्टान जैसी हैं। इसके बाद पीएम मोदी बोले कि दुश्मनों ने जवानों का जोश और गुस्सा देख लिया है। जवानों की तारीफ में मोदी ने कहा कि आपने जो वीरता हाल ही में दिखाई उससे विश्व में भारत की ताकत को लेकर एक संदेश गया है । मोदी ने आगे कहा कि आपके (जवानों) और आपके मजबूत संकल्प की वजह से ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनने का हमारा (देश) संकल्प और मजबूत हुआ है। मोदी बोले, 'आपकी इच्छाशक्ति हिमालय की तरह मजबूत और अटल है, देश को आप पर गर्व है
लेह-लद्धाख में जवानों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि आज हर देशवासी का सिर आपके सामने अपने देश के वीर के सामने आदर पूर्वक नतमस्तक होकर नमन करता है. आज आपके वीरता और पराक्रम से फूली हुई है। साथियों सिंधु के आशीर्वाद से ये धरती फूली हुई है। लेह, लद्दाख से लेकर करगिल और सियाचीन, गलवान घाटी के ठंडे पानी तक, हर जर्रा जर्रा, हर पत्थर भारतीय सैनिकों के पराक्रम की गवाही देती है। दुनिया ने आपका अद्मय साहस देखा है जाना है आपकी शौर्य गाथाएं गूंज रही है।
मोदी जी के कूटनीतिक कदम
यह साफ है कि भारत सरकार इस पूरे मामले में चीन को अंडर स्कोर कर रही है। सरकार यह बताना चाह रही है कि यह विवाद एकतरफा चीन ने पैदा किया है। वह जमीन कल भी हिंदुस्तान के पास थी, आज भी है और आगे भी रहेगी। हमारे प्रधानमंत्री वहां कभी भीजा सकतेहैं।
प्रधानमंत्री मोदी खुद वहां जाकर यह बता रहे हैं कि भारत अपनी संप्रभुता और अखंडतासे कोई समझौता नहीं करेगा। वे चीन को संदेश दे रहे हैं कि भारत अपनी एक इंच जमीन नहीं छोड़ेगा, पूरा लद्दाख भारत का है।
प्रधानमंत्री का वहां जाना, इस बात को भी बताता है कि टॉप लेवल लीडरशिप इस मामले को कितनी गंभीरता से ले रही है। सरकार यह भी बता रही है कि दोनों देशों के बीच भले हीबातचीतचलरही है, लेकिन यह विवाद चीन की वजह से है।
इस यात्रा के राजनीतिक मायने
यह प्रधानमंत्री का यह उसूल है कि वे चौंकाते रहते हैं। ऐसा ही उन्होंने इस बार भी किया। कल तकरक्षामंत्री राजनाथ सिंह लेह जाने वाले थे।लेकिन यहां प्रधानमंत्री का जाना ज्यादा जरूरी था। चीन के साथ उन्होंने विपक्ष को भी जवाब दिया है। वोविपक्ष को भी बता रहे हैं कि सबकुछ सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है।
प्रधानमंत्री यदि वहां जाते हैं, तो दो चीजें बता रहे हैं कि इस मुद्दे पर देश कितना गंभीर है। दूसरा यह है कि भारत अपने हितों के लिए खड़ा होगा। यदि चीन और विपक्षको यह लग रहा होगा कि भारत पीछे हट जाएगा, तो यह नहीं होगा। सरकार और सेना को जो कुछ करना होगा, वो किया जाएगा।
इस यात्रा के सामरिक मायने
प्रधानमंत्री ने चीन का नाम लिए बगैर विस्तारवादी नीति के खिलाफ भी बोला, इसका मतलब हमारीजमीन पर कब्जा की उम्मीद छोड़ दो।लेकिन इसका मतलब यह भीनहीं कि आगे चीन सेबातचीत नहीं होगी।
पाकिस्तान से करगिल युद्ध के दौरान भी भारतबातचीत कर रहा था। लेकिन यह बात सेकंड विंडो से हो रही थी। किसी भी देश सेसंपर्क तोड़ना अच्छी बात नहीं है। किसी मध्यस्थ के जरिए बात करना ठीक नहीं होताहै। किसी से भीजो भी बात करनी है, वो आंखमें आंखदेखकर करिए, सोच समझकर करिए। यह एक प्रधानमंत्री से बेहतर कोई और नहीं सोच सकता है।
आर्थिक मायने-
भारत में 59 चाइनीज ऐप बैन किए जाने के फैसले तथा चीनी सामान के बहिष्कार की चेतावनी के बाद यह दौरा आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। आर्थिक मायनों में भारत तेवर वर्तमान में सख्त नजर आ रहे हैं।
भारत, चीन को ट्रेड मुद्दे पर भी घेर रहा है और बता रहा हैकि यह बहुत गंभीर मामला है। भारत ने चीन के साथपूरी तरह से ट्रेड न बंद करते हुए भी साफ मैसेज दिया है कि हम आर्थिक नुकसान को भीअफोर्ड करने की स्थिति में हैं।
भारत ने चीन के सामनेयह बात रखी है कि सीमा विवाद का कोई हल निकलना चाहिए, नहीं तो क्राइसिस बढ़ सकती है। पहले दोनों के बीचयह होता था कि सीमा विवाद चलता रहे, लेकिन बाकी काम न रुके। लेकिन अब ऐसा नहीं है।
इस बार भारत ने सीमा विवाद और आर्थिक रिश्तों की सारी जिम्मेदारी चीन पर डाल दी है। यदि चीन हमारे साथ संबंध सुधारना चाहता है तो उसे पहले कदम उठाना होगा,नहीं तो इससे दरार और ही बढ़ेगी।
सेना को संदेश-
यह सेना के मनोबल और उनकी दृढ़ता को बढ़ाने का प्रयास भी है। प्रधानमंत्री ने वहां जाकर सेना के जवानों को यह संदेश दिया है कि पूरा देश और सरकार आपके साथ खड़ी है। मोदी ने उन्हें संबोधित करके और गलवान का जिक्र करके भी उनके उत्साह को दोगुना बढ़ा दिया है।
प्रधानमंत्री का यह लेह दौरा सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ाने के लिए ही था। सरहद औरसेना के बीच सेही चीन को उन्होंने यह साफ संदेश भीदिया है कि भारत अपनी धरती के साथ कोई समझौता नहीं करेगा।हम शांति चाहते हैं, लेकिन इसकी कीमत आत्मसम्मान समझौता नहीं हो सकताहै।
चीन को अप्रत्यक्ष संदेश
भारत ने चीन को यह साफ बता दिया है कि तुम हमारी सीमा को क्रॉस नहीं कर सकते हो। तुम हमारी जमीन की ओर देख भी नहीं सकते हो। वहीं, चीन पर बहुत प्रेशर में है। उस पर तमाम आर्थिक प्रतिबंध हैं। कोरोना को लेकर दुनिया उसे घेर रही है। वहां इंटरनल पॉलिटिक्स भी चल रही है।
भारत अपनी डिप्लोमेटिक रणनीति को साधने में सफल हुआ है। भारत ने हाल ही में यूनाइटेड नेशंस में हांगकांग का मुद्दा उठाया है। 27 और देश भी भारत के साथ आ गए हैं।भारत की रूस के साथ कल वार्ता हुई, इसमें रक्षा डील भी हुई है। अमेरिका खुलकर भारत के पक्ष में बोल रहा है।
चीन को मैसेज जा रहा है कि भारत न सिर्फ खुद खड़े होने सक्षम है, बल्कि दूसरे देश भी उसके साथ खड़े हो रहेहैं।चीन से जो खफा देश हैं, वह भारत के साथ आ रहेहैं। बीच वाले देश जैसे रूस भी भारत के साथ आया है। चीन के पास अब कोई ऐसा देश नहीं है, जो उसके साथ खड़ा हो, सिवाय पाकिस्तान।
दुनिया को शान्ति संदेश-
प्रधानमंत्री यह भी बता रहे हैं कि भारत पूरी तरह से उस जमीन पर कब्जा बनाए रखने में सक्षम है। यह मैसेज सिर्फ चीन के लिए ही नहीं, उन देशों के लिए भी है, जो इस कन्फ्यूजन में हों कि आखिर यह मुद्दा क्या है। भारत का स्टैंड क्या है।
इस दौरे से दुनिया को यह पूरी तरह से पता चल गया कि यह भारत का इलाका है, जहां न सिर्फ सेना खड़ी है, बल्कि भारत के प्रधानमंत्री भी मौजूद हैं।
भारत-चीन सम्बन्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1950 के दशक में लगातार और बड़े जोर-शोर से 'हिन्दी- चीन भाई-भाई' का नारा मुखर किया गया था और बारम्बार भारत और चीन के बीच हजारों वर्ष पुराने सांस्कृतिक सम्बन्धों का उल्लेख होता रहता था। भारत (साम्यवादी खेमे के बाहर) पहला जनतान्त्रिक देश था जिसने जनवादी चीन को मान्यता दी थी। पण्डित नेहरू ने अपने मित्र सहयोगी के. एम. पाणिक्कर को भारतीय राजदूत के रूप में चीन भेजा था। भारत ने ही चीन को सुरक्षा परिषद् में उसकी स्थाई सीट दिलाने की मुहिम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। नेहरू और कृष्ण मेनन के प्रयत्नों से ही बान्डुंग शिखर सम्मेलन में चीन को आमन्त्रित किया गया था। तिब्बत के मसले पर भारत ने इस क्षेत्र में चीन की सम्प्रभुता स्वीकार कर पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए। तब यह लगा था कि सीमा विवाद के बारे में मतभेद के बावजूद दोनों देशों के सम्बन्ध सद्भावपूर्ण बने रहेंगे। जिनेवा शान्ति सम्मेलन में हिन्द-चीन संकट को निपटाने के लिए चीनी राजनयिकों को भारत का समर्थन प्राप्त हुआ और किसी को इस बात का आभास नहीं था कि स्थिति इतनी जल्दी बिगड़ेगी। अधिकांश भारतीयों को 1962 में यह लगा कि चीन ने भारत के साथ विश्वासघात किया है। चीन ने अचानक सीमा विवाद की आड़ में भारत पर आक्रमण कर करोड़ों भारतीयों को हतभ्रत कर दिया था।
सन 1962 में भारत-चीन सीमा युद्ध के दूरगामी परिणाम सामने आरो। इससे पूर्व तक भारत यह दावा करता रहा था कि एशिया में दो ही बड़ी ताकते हैं एवम् दो अलग-अलग हजारों साल पुरानी सभ्यताएं भारत एवम् चीन, जिनके अपने-अपने सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र हैं। इस युद्ध के बाद यह बात खुलकर सामने आई कि गुटनिरपेक्ष अफ्रीकी-एशियाई बिरादरी में भारत बिल्कुल अकेला पड़ गया। भारत के सुनियोजित आर्थिक विकास की सारी योजनाएं गड़बड़ा गई और खस्ता हाल भारत अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच पर पहले जैसी प्रभावी भूमिका भी निभाने में असमर्थ हो गया।
ब्रिटिश शासनकाल में मैकमोहन नाम के अंग्रेज सर्वेक्षक अफसर ने उस वक्त चीन-भारत के बीच सीमाओं का निर्धारण कर दिया था। यह याद रखने लायक है कि शिमला समझौते में जहाँ दोनों पक्षों अर्थात ब्रिटिश भारत और चीन ने इस सीमा को मान्यता दे दी थी, लेकिन चीन ने इसे मन से कभी भी स्वीकार नहीं किया था।
यह बात समझना जरूरी है कि जहाँ तक चीन के राष्ट्रीय गौरव और उसकी पारम्परिक सीमाओं को अक्षत रखने का प्रश्न है, इस बारे में चीन की सभी सरकारें हमेशा एक मत रही हैं, वे साम्राज्यवादी हों, राष्ट्रवादी, साम्यवादी या माओवादी। जनवादी चीन को यह आशा थी कि आजादी के बाद भारत की सरकार का आचरण ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के उत्तराधिकारियों जैसा नहीं रहेगा और तिब्बत तथा हिमालयी सीमांत में वह चीनी दावों को आसानी से स्वीकार कर लेंगे और जो उसने गंवाया था, उसे वह वापस प्राप्त कर लेगा। यह उम्मीद इसलिए भी थी कि चीन की आजादी की लड़ाई के दौरान भारत की कांग्रेस पार्टी ने चीन के मुक्ति संग्राम के साथ अपना सहयोग प्रदर्शित किया था।
प्रधानमंत्री मोदी का चीन के प्रति रवैया और मुलाकातें
पांच बार चीन की यात्रा और संबंध सुधारने की कोशिश।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तक 9 बार चीन का दौरा कर चुके हैं।इसमें 4 बार गुजरात के सीएम रहते हुए और 5 बार प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी चीन के दौरे पर गए हैं।पिछले 6 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 18 बार मुलाकात हो चुकी है।इनमें वन-टू-वन मीटिंग के अलावा दूसरे देशों में दोनों नेताओं के बीच अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में हुईं अनौपचारिक मुलाकातें भी शामिल हैं।
अप्रैल 2018 मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की चीन के वुहान में शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात हुई। इस दौरान वैश्विक महत्व के मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए प्राथमिकताओं पर विस्तृत बातचीत हुई। जिनपिंग पीएम मोदी को हुबेई के म्यूज़ियम ले गए जहां चीनी कलाकारों ने भारत के प्रधानमंत्री के स्वागत में सांस्कृतिक कार्यक्रम किया था।
अक्टूबर 2019 में चीनी राष्ट्रपति की मूलाकात के बाद भी भारत चीन सीमा विवाद पर गहरा प्रभाव नही पड़ा अक्टूबर 2019 में मोदी और शी जिनपिंग की महाबलीपुरम में अनौपचारिक मुलाकात हुई थी। 2019 में दोबारा पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग से यह तीसरी मुलाकात थी। बंगाल की खाड़ी के ऊपर समुद्र तट पर जिनपिंग के बीच 6 घंटे बैठक हुई थी। इस दौरान दोनों देशों में कई समझौतों पर बात हुई थी।
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