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Friday, March 20, 2020

निर्भया गैंगरेप: अपराध से इंसाफ तक का सफर न्याय की दहलीज में



Nirbhaya ke doshiyon ko fansi
निर्भया को न्याय


निर्भया गैंगरेप: अपराध से इंसाफ तक का सफर न्याय की दहलीज में 


आज बात करेंगे उस दरिंदगी की  जो 16 दिसम्बर 2012 की रात कुछ बदमाशों ने मिलकर एक चलती बस में सवार युवती के साथ मानवता को शर्मशार करने वाली वारदात को अंजाम दिया जो एक ऐसी  घिनौनी हरकत और दरिंदगी जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता खैर देर लगी लेकिन कानून ने अपना व्यवस्थित और संविधान के अनुसार  काम करते हुए आखिर उस निर्भया को न्याय दिया जो की बेशक जल्द मिलना चाहिए था।
दिनांक 20 मार्च 2020 को चार दोषियों एक साथ फांसी दी गई । कोरोनावायरस की दहशत के बीच में फांसी लोगों का ध्यानाकर्षण तो नहीं कर पायेगी लेकिन इस सजा से जरूर सबक लेकर भविष्य में ऐसे अपराध के बारे गंभीरता से लिया जाएगा  या अपराधियों में जरूर भय का माहौल बनेगा  यह कहना मुश्किल होगा क्योंकि अपराध रोकने के लिए फांसी ही कारगर नहीं है इसके लिए देश के युवाओं और अपराध से जुड़े लोगों की सोच में बदलाव जरूरी होगा ‌। ऐसे अपराध से जुड़े प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कारकों पर लगाम लगानी होगी।
फिर भी इन अपराधियों के अपराध की प्रकृति के अनुसार उनको जीवन का अधिकार नहीं था। इसलिए सजा ए मौत के योग्य माने गये । कानून ने अपना काम किया है। संवेदनशील व्यक्ति इस फांसी से विचलित हुआ होगा लेकिन उसे वो दिन भी याद रखना चाहिए जिस दिन उस निर्दोष यूवती के साथ किस कदर अमानवीयता की थीं ?
खैर इस अपराध और इंसाफ तक के सफर में एक संदेश उन अपराधियों को जरूर जायेगा की भविष्य में ऐसी घिनौनी हरकत का अंजाम यही होगा जो आज उस फांसी के फंदे पर इन अपराधियों का हुआ।
आइए नजर डालते हैं किस तरह गुजरा यह अपराध का काला अध्याय जो नहीं होना था। वो सात साल पहले हुआ।
कैसे पहुंचें अपराधी फंदे तक?
क्या हुआ 20 तारीख की सुबह?

निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों को शुक्रवार सुबह तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे पर लटकाया गया। साल 2012 में दिल्ली में एक बस में इन दरिंदों ने निर्भया के साथ गैंगरेप किया था, जिसके बाद उसकी मौत हो गई थी।
साल 2012 में राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप और हत्या कांड में आज करीब सवा सात साल के बाद आखिरकार इंसाफ  हुआ है। तिहाड़ जेल के फांसी घर में शुक्रवार सुबह ठीक 5.30 बजे निर्भया के चारों दोषियों को फांसी दी गई।निर्भया के चारों दोषियों विनय, अक्षय, मुकेश और पवन गुप्ता को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया, बाद में पोस्टमार्टम किया गया।
सात साल 3 महीने और तीन दिन पहले यानी 16 दिसंबर 2012 को देश की राजधानी में हुई इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।सड़कों पर युवाओं महिलाओं का सैलाब इंसाफ मांगने के लिए निकला था और आज जाकर उसका नतीजा निकला है। शुक्रवार सुबह दोषियों को फांसी दिए जाने के बाद लोगों ने तिहाड़ के बाहर मिठाई भी बांटी।
निर्भया की मां आशा देवी ने लंबे समय तक इंसाफ के लिए लड़ाई लड़ी, आज जब दोषियों को फांसी दी गई तो उन्होंने ऐलान किया कि 20 मार्च को वह निर्भया दिवस के रूप में मनाएंगी।आशा देवी का कहना है कि वह अब देश की दूसरी बेटियों के लिए लड़ाई लड़ेंगी।

बचाने की कोशिश भी हुई खूब
निर्भया के चारों दोषियों की ओर से आखिरी वक्त तक फांसी को टालने की कोशिश की गई।वकील एपी सिंह ने फांसी के दिन से एक दिन पहले दिल्ली हाई कोर्ट में डेथ वारंट को टालने के लिए याचिका दायर की गई, लेकिन इसमें दोषियों के खिलाफ फैसला आया।
आधी रात को वकील एपी सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और जब सर्वोच्च अदालत बैठी तो वहां भी निर्भया के दोषी कुछ ऐसी दलील नहीं दे सके जिसकी वजह से ये फांसी टले. हालांकि, एपी सिंह लगातार इस फांसी को गलत बताते रहे और मीडिया-अदालत और राजनीति पर आरोप मढ़ते रहे।

आरोपियों के वकील का एक बयान

कानूनी रूप से जो भी उपाय हैं, वे सभी दोषियों को मिलने चाहिए। मैंने जेसिका लाल मर्डर केस देखा, मैंने नैना साहनी तंदूर कांड भी देखा था। उसे क्षत-विक्षत करके तंदूर में डाला गया लेकिन दोषियों को फांसी नहीं हुई। निठारी कांड हुआ, कंकाल मिले, क्या दोषियों को फांसी दे दी गई। पुलवामा कांड पर तो कोई बात ही नहीं हुई। राजनीतिक तुष्टीकरण के आधार पर देश में फांसी की सजा तय होती है। इसी वजह से पूर्व चीफ जस्टिस ने कहा था कि फांसी का फंदा गरीबों के लिए बना है, अमीरों के लिए नहीं। यह डर महात्मा गांधी को पहले से था इसीलिए उन्होंने कहा था कि फांसी की सजा हिंसा है। यह सरकारों को बचाने के लिए, सरकारों को गिराने के लिए इस्तेमाल होगी। 
आरोपियों के वकील को गलत समझना भी हमारी कानून व्यवस्था और संविधानिक व्यवस्था के प्रति एक भूल होगी क्योंकि वो भी कानून के मुताबिक ही अपना काम कर रहे थे।

कैसे बीता फांसी से पहले अपराधियों का वो खौफनाक मंजर
तिहाड़ जेल के अधिकारी ने बताया कि गुरुवार रात को मुकेश और विनय ने खाना खाया था, लेकिन अक्षय ने केवल चाय पी थी। जब कोर्ट में सुनवाई चल रही थी तो विनय रोने लगा था, लेकिन बाकी तीनों बिल्कुल शांत थे। देर रात जब दोषियों को पता चला कि उनकी फांसी अब किसी हालत में नहीं टल सकती है, तो अचानक की उनके व्यवहार में बदलाव आ गया। तिहाड़ जेल में बंद चारों दोषी खबर मिलते ही बेचैन हो उठे। रात भर दोषियों को नींद नहीं आई। वो बेचैन होकर अपने बैरक में ही टहलते रहे। फांसी का खौफ उनके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था।
शुक्रवार तड़के 3:15 बजे ही चारों दोषियों को उनके सेल से उठाया गया। दैनिक क्रिया के बाद चारों को नहाने के लिए कहा गया। उन चारों के लिए जेल प्रशासन की ओर से चाय मंगाई गई, लेकिन किसी ने भी चाय नहीं पी। इस दौरान विनय ने कपड़े बदलने से इनकार कर दिया और रो-रो कर माफी मांगने लगा।
इस दौरान अन्य दोषी भी गिड़गिड़ाकर माफी मांगने लगे और रोने लगे। इसके बाद उन्हें समझा-बुझाकर शांत कराया गया। उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई। फांसी घर में लाने से पहले उनके हाथ पीछे की ओर बांध दिए गए। इसके बाद जब उन्हें फांसी घर लाया जाने लगा तो एक दोषी सेल में ही लेट गया और जाने से मना करने लगा। 



इस कदर चला अपराध से इंसाफ का सफर

16 दिसंबर 2012 को दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका इलाके में हुए गैंगरेप ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। यह घटना उस समय घटित हुई 23 साल की युवती निर्भया (न काल्पनिक नाम) एक बस में अपने मित्र के साथ चढ़ी। इस बस में इन दो के अलावा 6 अन्य लोग भी थे। इन लोगों ने केवल उस युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया बल्कि उसे बुरी तरह से मारा जिसके बाद निर्भया के अंदरुनी अंगो पर गहरी चोट पहुंची। घटना के 11 दिनो बाद महिला को इलाज के लिए सिंगापुर शिफ्ट किया गया लेकिन बचाया नहीं जा सकता। इसकी मौत के बाद पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए। 
पूरे देश में जगह-जगह दोषियों को सजा देने के लिए प्रदर्शन होने लगे। इसके बाद पुलिस ने सभी छह आरोपियों को पकड़ लिया। उनपर सेक्सुअल असॉल्ट और मर्डर की धारा लगाई गई। इनमें से एक दोषी रामसिंह ने पुलिस कस्टडी के दौरान ही फांसी लगा ली। एक दोषी के 18 साल से कम उम्र होने के कारण उसे अधिकतम 3 साल ही सजा मिली और वो आजाद हो गया। 5 मई 2017 को बाकी चारो को कोर्ट ने फांसी की सजा दी। 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिव्यू पीटीशन खारिज करके इनकी फांसी का रास्ता साफ कर दिया था।

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