आज पूरा विश्व महिला दिवस मना रहा है ,हर देश में महिलाओं को इज्जत, सम्मान, और महत्त्व देने के उद्देश्य से इसी दिन खूब सारी बातें की जाती है। भारत में भी नारी शक्ति को महत्व देते हुए आज के दिन को मुख्य स्थान दिया जाता है।
भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेमाल' कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किय जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस यानि 8 मार्च को दुनिया के सभी देश चाहे वह विकसित हो या विकासशील मिलकर महिला अधिकारों की बात करते हैं। महिला दिवस के दिन औरतों की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के बारे में चर्चा की जाती है। साथ ही औरतों की तरक्की के विविध पहलुओं पर बातें होतीं हैं। तो आइए हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बारे कुछ गुफ्तगू करते हैं।
20 वीं सदी तक आते-आते महिलाओं ने अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता दिखानी शुरू कर दी थी। अपने अधिकारों को लेकर सुगबुगाहट पैदा होने के बाद 1908 में 15000 स्त्रियों ने अपने लिए मताधिकार की मांग दुहराई। साथ ही उन्होंने अपने अच्छे वेतन और काम के घंटे कम करने के लिए मार्च निकाला। यूनाइटेड स्टेट्स में 28 फरवरी 1909 को पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का विचार सबसे पहले जर्मनी की क्लारा जेडकिंट ने 1910 में रखा। उन्होंने कहा कि दुनिया में हर देश की महिलाओं को अपने विचार को रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने की योजना बनानी चाहिए। इसके मद्देनजर एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें 17 देशों की 100 महिलाओं ने भाग लिया और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने पर सहमति व्यक्त की। 19 मार्च 1911 को आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। उसके बाद 1913 में इसे बदल कर 8 मार्च कर दिया। 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहली बार 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया था। इस लम्बे इतिहास में आते आते वर्ष 2021 में 110वां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है ।
बाबा साहेब आंबेडकर ने कहा था कि उस देश की प्रगति वहां की महिलाओं की स्थिति से तय होती है।
भारत में भी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन नारियों के सम्मान में तरह-तरह के समारोह आयोजित किए जाते हैं। साथ ही समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए महिलाओं को सम्मानित भी किया जाता है। स्त्रियों के लिए कार्य करने वाले संगठन इस दिन विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण शिविर और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन करते हैं। कई संस्थाओं द्वारा गरीब महिलाओं को आर्थिक मदद देने की घोषणा भी की जाती है।
भारत में नारियों को मौलिक अधिकार, मतदान का अधिकार और शिक्षा का अधिकार तो प्राप्त है लेकिन अभी भी स्त्रियां अभावों में जिंदगी बीता रही हैं। हमारे समाज में धीरे-धीरे हालात बदल रहे हैं। आज कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो नारियों से अछूता हो। आज चाहे फिल्म हो, इंजीनियरिंग हो या मेडिकल, उच्च शिक्षा हो या प्रबंधन हर क्षेत्र में स्त्रियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। अब बेटे और बेटी के बीच फर्क घटा है लेकिन अभी भी यह कुछ वर्ग तक ही सीमित है। नारियों के समक्ष खुला आसमान और विशाल धरती है जिस पर वह अनंतकाल तक अपना परचम लहरा सकती है। इन तमाम बातों के बावजूद भी आज नारियां उस सुरक्षित वातावरण में नहीं है जिसमें वो होनी चाहिए। आज भी हर जगह महिलाओं के साथ अत्याचार होते हैं। आये दिन महिलाओं के साथ दरिंदगी होती है तथा उनकी हत्याएं होती है। कहीं दहेज के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है कहीं घर की चारदीवारी में कैद की जाती है। आज महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात शिक्षा और सुरक्षा की है। बीसवीं सदी में भी महिलाएं शिक्षा से वंचित रह रही है। हालांकि महिलाओं में क्षमता की कमी नहीं है उनको बस अवसर की जरूरत होती है महिला वायुयान उड़ा सकती है, सीमा पर सुरक्षा के लिए तैनात हो सकती है, डांक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर आदि कार्यो में पुरूष के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने को तैयार हैं बस आज नारी शक्ति को बराबर अवसर प्रदान करने की जरूरत है। साथ ही गन्दी मानसिकता को त्यागकर महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए आगे आने की जरूरत है। क्योंकि नारी वह देवी है जो तीन रुप यथा पत्नी,प्रेमीका,और मां की भूमिका अपने त्याग द्वारा निर्वाहन करती है।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास
विश्व में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन एक श्रम आंदोलन के रूप से उदय हुआ था। जब संयुक्त राष्ट्र ने हर वर्ष आयोजन के तौर पर स्वीकृति दी थी। महिला दिवस का सुत्रपात 1908 में तब हुआ था तब न्यूयॉर्क शहर में 15 हज़ार महिलाओं ने काम के घंटे कम करने तथा बेहतर पगार और मतदान की माँग के साथ विरोध प्रदर्शन किया गया था। एक साल बाद अमेरिकी सोशलिस्ट पार्टी ने पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत की थी। लेकिन इस दिन को अंतरराष्ट्रीय बनाने का विचार क्लारा जेटकिन नाम की महिला के दिमाग़ में आया था। उन्होंने अपना ये आइडिया 1910 में कॉपेनहेगन में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑफ़ वर्किंग वीमेन में दिया था।
इस कांफ्रेंस में 17 देशों की 100 महिला प्रतिनिधि हिस्सा ले रही थीं। इन सबने क्लारा के सुझाव का स्वागत किया था। इसी के साथ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, स्विट्जरलैंड देशों में मनाया गया।
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