भारत में बढ़ती अपराध प्रवृति के लिए कौन जिम्मेदार?Jagriti PathJagriti Path

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Wednesday, February 5, 2020

भारत में बढ़ती अपराध प्रवृति के लिए कौन जिम्मेदार?



Crime in india
Crime in india





हमारी मानव सभ्यता  हर क्षेत्र में तेजी से परिष्कृत हो रही है। सामाजिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक आदि प्रकार से हम जीवन में नवाचार ला रहे हैं। मानव हमेशा अपने आप को प्रकृति में अन्य लोगों के साथ रहने के लिए नये-नये आयामों को ढूंढता रहता है। इस प्रकार मानव स्वयं और अपने सामाजिक परिवेश को अनवरत सुधारात्मक रूप देता रहा है। इसके परिणामस्वरूप वर्तमान सदी में आते-आते हम मानवधिकार, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, संवैधानिक व्यवस्था,कल्याणकारी राज्यव्यवस्था, सुरक्षा तंत्र, न्याय जैसी अनेक व्यवस्थाओं का निर्माण कर सुरक्षित, सुखी और स्वतंत्र जीवन जीने की अच्छी अवस्था में हैं।  लेकिन इस प्रगतिशील सभ्यता में मानव क्रुरता और भयहीनता का स्वभाव भी साथ लेकर चल रहा है। नैतिकता और राम राज्य की अवधारणा के युग में भी ऐसे क्रुर और घिनौने अपराध देखते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। महिलाओं और बच्चों के साथ जिस प्रकार बर्बरता होती है। इंसान इंसानियत की सारी हदें पार कर इंसान की निर्मम हत्या कर देता है तो हम विचलित होकर सोचते हैं कि मानवता दानवता की ओर क्यों बढ़ रही है? इस सवाल का जवाब हमें अपनी इस सम्पूर्ण निर्मित व्यवस्था में ढूंढना बेहतर होगा। अपराध एक प्रकार की सामाजिक विषमता है। यह व्यक्तिगत मानसिक विषमता का परिणाम है। इस प्रकार की विषमता का प्रारंभ हमारी दुषित और कमजोर सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था से होता है। हम इस भौतिकवाद और सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में लोगों की मानसिकता का पोषण किस प्रकार कर रहे हैं? यह समझना महत्वपूर्ण है।हमारे समाज में बच्चों, युवाओं आदि को श्रव्य-दृश्य तथा मुद्रित सामग्री में क्या परोस रहे? कहीं न कहीं हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक तथा बहुमाध्यम तंत्र का वर्तमान स्वरुप गलती कर रहा हैं।जरुर हमारा सिस्टम हिंसात्मक तथा अपराधिकि प्रवृति के लिए जिम्मेदार है। इसके साथ-साथ त्वरित जाॅच तथा कार्रवाई नहीं होना, न्यायिक तथा दण्ड प्रक्रिया में लम्बा समय लगने से भी अपराधियों का दुस्साहस बढ़ता है। हालांकि दुनिया में अपराधों का इतिहास पुराना है। अपराध जिस समय मानव समाज की रचना हुई अर्थात्‌ मनुष्य ने अपना समाजिक संगठन प्रारंभ किया, उसी समय से उसने अपने संगठन की रक्षा के लिए नैतिक, सामाजिक आदेश बनाए। उन आदेशो का पालन मनुष्य का 'धर्म' बतलाया गया। किंतु, जिस समय से मानव समाज बना है, उसी समय से उसके आदेशों के विरुद्ध काम करनेवाल भी पैदा हो गए है और जब तक मनुष्य प्रवृति ही न बदल जाए, ऐसे व्यक्ति पैदा होते रहेंगे।
नवीन औद्योगिक सभ्यता में अपराध का रूप तथा प्रकार भी बदल गया है। नए किस्म के अपराध होने लगे हैं जिनकी कल्पना करना कठिन है। भारत जैसी पवित्र और नैतिक मूल्यों की देवभूमि में बढ़ते घिनौने अपराध चिंता का विषय है।
हमारे देश में महिलाओं , बच्चों,और वंचित कमजोर लोगों के प्रति अपराध तेजी से बढ़ रहें हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर एक घंटे में 4 रेप होते हैं। 2012 में 23 साल की निर्भया के साथ मानवता की सारी हदे पार करते हुए बालात्कार की घटना सामने आने के बाद भी ये सिलसिला लगातार जारी है।
जिसके बाद उन्नाव, कठुआ आदि बलात्कार और निर्मम हत्याओं के अनेक मामले सामने आए। कुछ मामले दर्ज नहीं होते तो कई मामलों का खुलासा नहीं होता, इस प्रकार की घटनाओं के आंकड़ों की बात नहीं करके, इनके कारण और लगाम की बात करना उचित होगा।
  हाल ही  हैदराबाद में महिला डॉक्टर के साथ दरिंदगी के बाद हत्या कर दी गई महिला का शव जला हुआ मिला। इससे पहले भी ऐसे निर्मम अपराधों ने मानवता को शर्मशार  किया है। इस घटना से सरकार को सबक लेकर ऐसे अपराधों के प्रति माकूल इंतजाम किए जाने चाहिए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि अनेक प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए अनेक कानूनी प्रावधान,अधिनियम और सजाओं के बाद भी अपराधियों में अपराधिक प्रवृति क्यों बढ़ रही है?  जिसमें सजा का अंदाजा होने के बावजूद भी युवा हैवानियत की सारी हदें पार कर अपराध को अंजाम देते हैं। हैदराबाद में महिला डॉक्टर से बलात्कार और हत्या की घटना के बाद लोगों में आक्रोश है, वे फांसी की मांग कर रहे हैं।
क्या मृत्यु दण्ड जैसी कठोर सजा देकर ऐसे अपराधियों पर पूर्ण रूप से नकेल कसी जा सकती है? इससे पहले हमें जन्म या आनुवंशिकता का दंडाभियोग से संबंध जानना चाहिए, निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता; किंतु हम वातावरण के प्रभाव अस्वीकार नहीं कर सकते। यह साधारण अनुभव है कि कलुषित वातावरण अपराध करने की भावना को प्रोत्साहन देता है। चोरों की संगति में यदि किसी शिशु को रख दिया जाय तो क्रमश: उसकी मनोवृत्ति चोरी की ओर अग्रसर अवश्य होगी।  अत: प्रगतिशील समाज में शौकिया अपराधियों को दंडाभियोग से विरत करने के अभिप्राय से अपराध को प्रोत्साहन देने वाले वातावरण को समाप्त करना जरूरी है। साथ ही अपराध की प्रकृति को समझने हुए मृत्यु दण्ड जैसी सजा मिलनी  चाहिए इसमें कोई दोराय नहीं है। लेकिन हमें पीछे मुड़कर यह भी देखना चाहिए आखिर जिम्मेदार कौन हैं। समाज के मंच और इंटरनेट के प्रचार-प्रसार के युग में हम कितनी हिंसात्मक, भड़काऊ, अश्लीललता, तथा असभ्य प्रवृति फिल्मों, विज्ञापनों तथा अन्य माध्यमों से दिखा रहे हैं ,सुना रहें हैं? रेप गाने, रोमांटिक  सीन,लड़ाई के सीन आदि युवाओं को दिखाकर उनसे क्या जता रहे हैं। फिर उसने सभ्यता और नैतिकता की उम्मीद भी रखते हैं। युवाओं में वासना की आग को जगाने वाले सभी माध्यमों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। आज असमाजिक कृत्यों में लिप्त हो रहे युवाओं को सही मार्गदर्शन ,स्वच्छ मानसिकता, शिक्षा, रोजगार, समायोजन के लिए अवसर,आदर्श जीवन शैली तथा नैतिकता के आधार उपलब्ध कराने की जरूरत है। साथ ही निष्पक्ष जांच और समय पर सजा का प्रावधान हो जिससे दरिंदों में भय बना रहे। समय रहते हर क्षेत्र में सुधार करना होगा वरना  न जाने भविष्य में कितनी प्रियंका रेड्डी व निर्भया जैसी बहनों को हमें खोना पड़ेगा।


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