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Micro teahing सूक्ष्म शिक्षण |
सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा का ज्ञान
डॉ. डी. डब्ल्यू, ऐलन के अनुसार, “सूक्ष्म-अध्यापन कक्षा के आकार व समय में एक अनुक्रम अवरो परिस्थिति है।" डॉ. राबर्ट एन. बुश के अनुसार, “ सूक्ष्म अध्यापन एक अध्यापकीय शिक्षण तकनीक है।"
डी. डब्ल्यू, ऐलन तथा ए. डब्ल्यू ईद के अनुसार, " सूक्ष्म अध्यापन नियंत्रित अभ्यास की प्रणाली है जिसके अन्तर्गत नियंत्रित दशाओं में एक विशिष्ट अध्यापन व्यवहार को सीखना संभव है।"
बी. के. पासी व एम. एस. ललिता के अनुसार, “ सूक्ष्म शिक्षण वह प्रशिक्षण तकनीक है जो छात्राध्यापकों से यह अपेक्षा रखती है कि वे किसी एक सम्प्रत्यय को, थोड़े से छात्रों को, अल्प समय में, विशिष्ट शिक्षण कौशलों का प्रयोग करके पढ़ाए।
बी.एम. शोर के अनुसार ‘सूक्ष्म शिक्षण कम समय, कम विद्यार्थियों एवं कम शिक्षण क्रिया वाली विधि हैं। सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षण इकाई 5 से 10 मिनटों की तथा कक्षा में छात्र संख्या 6-10 रखी जाती है।
सामान्य हिंदी सूक्ष्म शिक्षण के प्रमुख चरण
1. विशिष्ट कौशल को परिभाषित करना।
2. कौशल का प्रदर्शन।
3. पाठ योजना तैयार करना ।
4. छोटे समूह को पढ़ाना (5 से 10 ही )
5. प्रतिपुष्टि।
1. पुनः नियोजन- प्रतिपष्टि के आधार पर पाठ योजना तैयार की जाती है।
2. पुनः शिक्षण कराना 3. पुनः मूल्यांकन का प्रतिपुष्टि प्राप्त करना
हम कह सकते हैं कि सक्ष्म शिक्षण के प्रमख सोपानों में निम्न कार्य होते हैं - छात्राध्यापकों को जिस कौशल का शिक्षण देना है। सूक्ष्म पाठ्यवस्तु को 5-10 छात्रों को 5- 10 मिनट में पढ़ाता है।
सूक्ष्म अध्यापन-प्रणाली की विशेषताएँ
- 5 से 10 मिनट तक छोटा सा पाठ ।
5 से 10 तक विद्यार्थी ।
एक कौशल का ही अभ्यास।
कार्य का मूल्यांकन
शिक्षण एक विद्यार्थी के बीच अन्तःक्रिया प्रभावी होती है। व्यक्तिगत क्षमताओं के अनुसार अवसर।
सेवा पूर्व एवं सेवारत शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए
उपयोगी।
शिक्षण कौशल विकास की प्रभावशाली प्रविधि है।
सूक्ष्म शिक्षण प्रविधि के घटक
सूक्ष्म शिक्षण परिस्थिति-अर्थात छोटी कक्षा, छोटी पाठ्य
वस्तु एवं अल्प अवधि शिक्षण। - सूक्ष्म शिक्षण कौशल- शिक्षण में एक समय में एक कौशल पर ध्यान देना चाहिये।
छात्र अध्यापक
प्रतिपुष्टि के साधन- इस घंटक में प्रशिक्षण देने वाले के साथ ही टेपरिकार्डर, बी.सी. आर., सी.वी.डी. प्रश्नावली आदि
होते हैं, जो प्रयोगशाला में व्यवस्थित होते हैं।
पारम्परिक शिक्षण एवं सूक्ष्म शिक्षण में अन्तर -
पारम्परिक शिक्षण में छात्र संख्या 40 से 60 तक होती है व सूक्ष्म शिक्षण में 5-10 ही होती है। पारम्परिक शिक्षण में शिक्षण अवधि 45 से 50 मिनिट होती है । परन्तु सूक्ष्म शिक्षण में यह अवधि 5 से 10 मिनट की होती है।
सूक्ष्म शिक्षण में उद्देश्यों को व्यावहारिक शब्दावली में लिखा जाता है जबकि पारम्परिक शिक्षण में ऐसा नहीं किया जाता है। सक्ष्म शिक्षण में प्रतिपुष्टि की व्यवस्था होती हैं परन्तु पारस्परिक शिक्षण में ऐसा नहीं किया जाता हैं
सूक्ष्म शिक्षण के गुण
कम अवधि, छोटी कक्षा तथा सीमित विषय-वस्तु के कारण शिक्षण की जटिलता कम हो जाती है।
वर्णन करने में सरल व भयरहित होती है।
वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन
परिवीक्षक-निर्देशक, पथ प्रदर्शक मित्र, दार्शनिक व सलाहकार के रूप में कार्य करता है, समालोचक के रूप में नहीं।
सूक्ष्म अध्यापन के दोष-
वास्तविक शिक्षण का स्थान नहीं ले सकती। - भारतीय परिप्रेक्ष्य में अनुकूल अवसर प्रदान नहीं कर पाता।
प्रशिक्षित प्राध्यापकों का पर्याप्त अभाव । धन की समस्या । निदान व उपचारात्मक कार्य पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
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