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Friday, January 24, 2020

रसायन विज्ञान (important nots)

Chemistry important nots
रसायन विज्ञान महत्वपूर्ण नोट्स



द्रव्य की अवस्था एवं गुण 

• द्रव्य : वह वस्तु जो द्रव्यमान युक्त हो और स्थान घेरती हो, उसे पदार्थ या द्रव्य कहा जाता है। 
 द्रव्य या पदार्थ को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया गया
(1) ठोस (ii) द्रव (iii) गैस 
•ठोस पदार्थों के आयतन व आकार दोनों निश्चित होते हैं । द्रव का आयतन तो निश्चित होता है, परन्तु आकार अनिश्चित होता है। गैसों का आयतन व आकार दोनों अनिश्चित होते हैं। 
•पदार्थों की अवस्था उनके कणों के बीच संसजन बल व उनकी गतिज ऊर्जा के परिमाण पर निर्भर करती हैं। 
•द्रव्य की प्रकृति कणीय होती है, जिनमें गतिशीलता पाई जाती है। 
• जो ठोस निश्चित ज्यामितिय आकृति में परमाणुओं की व्यवस्था रखते हैं, क्रिस्टलीय द्रव्य कहलाते हैं तथा द्रव्य का यह गुण क्रिस्टलीयता कहलाता है। 
• क्रिस्टलीय द्रव्यों को गर्म करने से प्राप्त होने वाले जल को 'क्रिस्टलीय जल' कहते हैं । जैसे-फिटकरी, फेरस सल्फेट को गर्म करने पर प्राप्त होने वाला द्रव ।
• जब ठोस के कण समांगता रखते हुए द्रव में विलीन हो जाते हैं, तो ऐसे ठोस को 'विलेय', द्रव को 'विलायक' और समांग मिश्रण को 'विलयन' कहते हैं।
विलेय + विलायक = विलयन 
•विलयन दो या दो से अधिक द्रव्यों का एक समांग मिश्रण है। 
•ऊर्ध्वपातनः कुछ द्रव्य गरम करने पर ठोस अवस्था से सीधे गैस अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं तथा ठंडक पाकर पुनः ठोस अवस्था में आ जाते हैं । द्रव्य के इस गुण को ऊर्ध्वपातन कहते हैं। जैसे-नौसादर, कपूर, आयोडीन, नेपथलीन आदि। 
•श्यानता; किसी तरल का वह गुण जिसके कारण वह बहने की क्रिया का विरोध करता है, श्यानता कहलाता है। विसरण: गैसों के कणों में एक-दूसरे में समांग होने की प्रवृत्ति को गैसों का विसरण कहते हैं। 
• द्रव या गैस का अपनी अधिक सांद्रता से अपनी क्रम सांद्रता की ओर तब तक गमन करते हैं जब तक वे समांग नहीं हो जाते, इसे विसरण कहते हैं। जैसे अगरबत्ती की खुशबू का पूरे कमरे में फैलना। 
• प्रत्यास्थताः किसी द्रव्य पर बल लगाने पर उसके आकार व आकृति में इस तरह का परिवर्तन कि बल हटाने पर द्रव्य अपनी पूर्व स्थिति में आ जाये। द्रव्य के इस गुण को प्रत्यास्थता कहते हैं।

 भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन 

 • भौतिक परिवर्तन (Physical Changes): 

ऐसा परिवर्तन जिसमें पदार्थ के भौतिक गुण बदल जाते हैं, परन्तु उनके संघटन तथा भार में कोई अन्तर नहीं आता और न ही कोई नया पदार्थ बनता है तथा परिवर्तन का कारण हटाने पर वह पुन: पूर्व अवस्था में लौट आता है, भौतिक परिवर्तन कहलाता है। जैसे-बर्फ का पानी में बदलना। 

 • रासायनिक परिवर्तन (Chemical Changes): 

ऐसा परिवर्तन जिसमें पदार्थ के भौतिक गुणों के साथ-साथ उनके संघटन एवं भार में भी परिवर्तन हो जाता है तथा नये पदार्थ का निर्माण होता है, रासायनिक परिवर्तन कहलाते हैं। ये परिवर्तन स्थायी होते हैं। जैसे-वस्तुओं का जलना, दूध का फटना, जंग लगना आदि। 

 • तत्व, यौगिक, मिश्रण 

 • तत्व (Element): 

वे सरलतम द्रव्य जिनके अणु में एक ही प्रकार के परमाणु पाये जाते हैं, 'तत्व' कहलाते हैं। जैसे-लोहा, ताँबा, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन आदि। 

 • यौगिक (Compound): 

वे पदार्थ जो दो या दो से अधिक तत्वों के निश्चित अनुपात में संयोग से बनते हैं, यौगिक कहलाते हैं। यौगिक में अपने अवयवी तत्वों से भिन्न गुण होते हैं । जैसे- जल (H,O), कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO), अमोनिया (NH,) 

 • मिश्रण (Mixture): 

वे पदार्थ जो या दो से अधिक तत्वों के अनिश्चित अनुपात में सयोग से बनते हैं, मिश्रण कहलाते हैं। जैसे-शर्बत, पीतल, वायु, आदि। 


 • तत्वों का वर्गीकरण: 

अब तक 115 तत्वों की खोज हो चुकी है। मेंडलीफ ने अपने प्रेक्षणों के आधार पर 'मेंडलीफ आवर्त नियम' प्रस्तुत किया। इस नियम के अनुसार 'तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन है।' आधुनिक आवर्त सारणी: आधुनिक खोजों से ज्ञात हुआ कि तत्वों का मूल लक्षण परमाणु भार नहीं बल्कि परमाणु क्रमांक है। अतः मेंडलीफ की आवर्त सारणी में परिवर्तन करना पड़ा। 1913 में एच. जी. मोजले ने आधुनिक आवर्त सारणी प्रस्तुत की, जिसके अनुसार 'तत्वों के गुण उनके परमाणु क्रमांकों का आवर्ती फलन हैं।' 

 • रसायन की भाषा तत्वों, यौगिकों एवं रासायनिक अभिक्रियाओं को संक्षिप्त रूप में लिखने की भाषा को रसायन की भाषा कहते हैं। प्रतीक (Symbol): सर्वप्रथम ग्रीक निवासियों ने तत्वों को लिखने के लिए प्रतीक एवं संकेतों का प्रयोग किया। जैसे-सूर्य से सोने को, चंद्रमा से चाँदी को, मंगल से लोहे को। 
 • सन् 1813 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक बर्जीलियस ने रसायन में प्रतीकों की आधुनिक प्रणाली दी। इस प्रणाली के अनुसार प्रत्येक तत्व के प्रतीक को अंग्रेजी वर्णमाला के एक या दो अक्षरों से प्रदर्शित किया जाता है। जैसे-हाइड्रोजन (H), ऑक्सीजन (O), कैल्शियम, (Ca), क्लोरिन (Cl) आदि। . 
 • प्रतीक तत्वों के बड़े नामों के संक्षिप्त रूप एवं एक परमाणु का द्योतक होता है।

•रासायनिक बन्धुता (Chemical Affinity): दो या अधिक तत्व निश्चित अनुपात में संयोग कर यौगिक बनाते हैं। प्रत्येक तत्व के परमाणु में संयोग करने की प्रवृत्ति को रासायनिक बन्धुता कहते हैं। जैसे-NH, H,O 
•संयोजकता (Valency): तत्वों के परमाणुओं का निश्चित संख्या में संयोग करने के गुण को संयोजकता कहते हैं। हाइड्रोजन के परमाणु को संयोग शक्ति को इकाई माना जाता है। 'संयोजकता' शब्द सर्वप्रथम 1852 में फ्रेंकलैण्ड नामक वैज्ञानिक ने दिया था। अम्ल, क्षार और लवण अपने जलीय विलयन में विपरीत आवेश वाले समूह में अपघटित हो जाते हैं, इसे आयनन (lonisation) कहते हैं। परमाणु या परमाणुओं का ऐसा समूह जिस पर निश्चित आवेश होता है। मूलक' (Radical) कहलाते हैं। धनात्मक आवेश वाले मूलक क्षारकीय मूलक (Basic Radical) और ऋणात्मक आवेश वाले मूलक अम्लीय मूलक (Acid Radical) कहलाते हैं। सूत्र (Formula): तत्वों के प्रतीकों का वह समूह जो पदार्थ के एक अणु को प्रदर्शित करता है, सूत्र (Formula) कहलाता है। जैसे HNO, (नाइट्रिक अम्ल), NaCl (सोडियम क्लोराइड) सूत्र दो प्रकार के होते हैं-(i) मूलानुपाती सूत्र (Empirical Formula) (ii) अणु सूत्र (Molecular Formula) . मूलानुपाती सूत्र द्वारा यौगिक में उपस्थित तत्वों के परमाणुओं के सरल अनुपात का ज्ञान होता है। जबकि अणुसूत्र द्वारा अणु में उपस्थित परमाणुओं की वास्तविक संख्या का ज्ञान होता हैं। 

•रासायनिक समीकरण (Chemical Equations): किसी रासायनिक अभिक्रिया के क्रियाकारकों एवं क्रियाफलों को सूत्रों एवं प्रतीकों के रूप में व्यक्त करना रासायनिक समीकरण कहलाता है। जैसे- Zn+H2SO4→ ZnSO4 + H2 किसी संतुलित रासायनिक समीकरण में दांयी एवं बांयी ओर प्रत्येक तत्व के परमाणुओं की कुल संख्या बराबर होती है।
जैसे-N2+3H2 ~ 2NH3


परमाणु संरचना (Atomic Structure)


सन् 1804 में डॉल्टन ने सर्वप्रथम बताया कि प्रत्येक तत्व छोटेछोटे अविभाज्य कणों से मिलकर बना है, जिन्हें डॉल्टन ने 'परमाणु' नाम दिया। परमाणु तीन मूल कणों से मिलकर बना है-(i) इलेक्ट्रॉन(ii) प्रोटोन (iii) न्यूट्रॉन।  इलेक्ट्रॉन की खोज सन् 1897 में जे. जे. थॉमसन ने की। इलेक्ट्रॉन ऋण आवेश युक्त कण है। इन पर विद्यमान आवेश को इकाई ऋण आवेश माना जाता है। इसका भार हाइड्रोजन के एक परमाणु के भार का 1/1837वां भाग होता हैं। इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान 9.1 x 10 की घात -31 किग्रा. तथा आवेश 1.6 x10 की घात -19 कूलाम होता है। • प्रोटॉन धन आवेशयुक्त कण है। इस पर विद्यमान आवेश को एक इकाई धन आवेश माना जाता है। इसका भार हाइड्रोजन के एक परमाणु के भार के लगभग बराबर होता है। प्रोटॉन का द्रव्यमान 1.672 x 10 की घात -27 किग्रा. तथा आवेश 1.6x 10 की घात -19" कूलाम होता है। प्रोटॉन की खोज सन् 1886 में रदरफोर्ड ने की थी। न्यूटॉन एक आवेश रहित कण है, जिसका भार एक प्रोटॉन के भार के लगभग बराबर होता हैं। न्यूट्रॉन की खोज सन् 1931 में जेम्स चैडविक ने की। परमाणु के दो प्रमुख भाग है -(i) नाभिक (ii) बाह्य कक्ष। नाभिक परमाणु का ठोस एवं केंद्रीय भाग होता है। जिसमें प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन पाये जाते हैं। जबकि इलेक्ट्रान बाह्य कक्ष में नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। 

परमाणु संख्या:

 तत्व के परमाणु में विद्यमान प्रोटॉन की संख्या को उस तत्व की परमाणु संख्या कहते हैं। परमाणु में इलेक्ट्रॉन की संख्या प्रोटॉन की संख्या के बराबर होती है। परमाणु में इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन की संख्या समान होने के कारण परमाणु विद्युत उदासीन होते हैं।
 

 द्रव्यमान संख्याः 

 किसी तत्व के परमाणु में उपस्थित कुल प्रोटॉन व न्यूट्रॉन का भार मिलकर उस तत्व की द्रव्यमान संख्या कहलाती है। 
 समस्थानिक (Isotopes): 
 किसी तत्व के अलग-अलग परमाणुओं में प्रोटॉन की संख्या तो समान हो, परन्तु न्यूट्रॉन की संख्या पृथक्पृथक् हो, ऐसे परमाणु उस तत्व के समस्थानिक कहलाते हैं। 
 

समभारिक (Isobars): 

वे तत्व जिनके परमाणु भार समान हो, किन्तु परमाणु संख्यायें भिन्न-भिन्न हो, समभारिक कहलाते हैं। जैसे-आर्गन, पोटेशियम तथा कैल्शियम तीनों समभारिक है। 
परमाणु में सभी इलेक्ट्रॉन निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं। इन कक्षाओं को ऊर्जा स्तर भी कहते हैं। इन कक्षों को 1, 2, 3,4,5.....संख्याओं या K, L, M, N........ से दर्शाया जाता है। 
परमाणु के बाह्यतम कक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉन को संयोजी इलेक्ट्रॉन कहते हैं। बाह्यतम कक्ष में अधिकतम आठ इलेक्ट्रॉन होते हैं। 
 परमाणु इलेक्ट्रॉन त्याग कर धनावेशित तथा इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणावेशित हो जाते हैं। आवेशयुक्त कण को आयन कहते हैं । ये दो प्रकार के होते हैं(i) धनायन (ii) ऋणायन।

 परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy) 

 यह ऊर्जा का अपरम्परागत स्रोत है। परमाणुओं पर न्यूट्रॉन के प्रहार से उनका विखण्डन हो जाता है। जिससे अत्यधिक ऊर्जा निकलती है, जिसे परमाणु ऊर्जा कहते हैं। नाभिकीय विखण्डन की खोज सन् 1939 मेंऑटोहॉन एवंस्ट्रॉम्सन ने की। 
 

नाभिकीय विखण्डन: 

जब सबसे भारी तत्व यूरेनियम-235 के नाभिक पर मंद गति वाले न्यूट्रॉनों का प्रहार किया जाता है, तब यह लगभग दो बराबर द्रव्यमान के परमाणुओं में विखण्डित हो जाता है। इस अभिक्रिया में कुछ द्रव्यमान ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाता है। नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया एक श्रृंखला अभिक्रिया है, इस अभिक्रिया में रेडियो एक्टिव पदार्थ उत्पन्न होते हैं।

नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया का उपयोग परमाणु बम एवं विद्युत ऊर्जा उत्पादन हेतु परमाणु भट्टियों में किया जाता है। नाभिकीय संलयनः जब दो या दो से अधिक हल्के नाभिक उच्च ताप एवं दाब पर मिलकर भारी नाभिक का निर्माण करते हैं । तब इस अभिक्रिया में द्रव्यमान में कुछ कमी आती है। यह कुछ द्रव्यमान ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाता है। इस अभिक्रिया में रेडियो सक्रिय पदार्थ उत्पन्न नहीं होते हैं। सौर ऊर्जा भी नाभिकीय संलयन अभिक्रिया का ही परिणाम हैं। सूर्य में यह ऊर्जा हाइड्रोजन परमाणुओं के हीलियम में बदलने के कारण उत्पन्न होती हैं। हाइड्रोजन बम में नाभिकीय संलयन अभिक्रिया से ही अपार ऊर्जा उत्पन्न होती है। 


ऑक्सीकरण-अपचयन (Oxidation & Reduction) 

ऑक्सीकरण: 

वह रासायनिक अभिक्रिया जिसमें ऑक्सीजन परमाणु या ऋण विद्युती तत्व का संयोग हों अथवा हाइड्रोजन परमाणु या धन विद्युती तत्व या मूलक का निष्कासन हो ऑक्सीकरण अभिक्रिया कहलाती है। 

 अपचयनः 

वह रासायनिक अभिक्रिया, जिसमें हाइड्रोजन परमाणुया धन विद्युती तत्व का संयोगहो अथवा ऑक्सीजन परमाणुया ऋण विद्युती तत्व या मूलक का निष्कासन हो अपचयन अभिक्रिया कहलाती है। वह पदार्थ जिसके कारण ऑक्सीकरण होता है, 'ऑक्सीकारक' कहलाता है तथा वह पदार्थ जिसके कारण अपचयन होता है अपचायक' कहलाता है। 
 

रिडॉक्स अभिक्रियाः

 वहअभिक्रिया जिसमें ऑक्सीकरण एवं अपचयन साथ-साथ होता है, रिडॉक्स अभिक्रिया कहलाती है। ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाः वह रासायनिक अभिक्रिया जिसमें ऊष्मा का निष्कासन होता है, ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया कहलाती है। जैसे N2 +3H2 → 2NH3 +93.33K ऊष्माशोषी अभिक्रियाः वह रासायनिक अभिक्रिया जिसमें ऊष्मा का अवशोषण होता है।  
 ऊष्माशोषी अभिक्रिया कहलाती है। जैसे-N2+02→ 2NO-180K
 उत्प्रेरकः 
 वह रासायनिक पदार्थ जो बहुत कम मात्रा में प्रयोग करने पर अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित कर देते हैं एवं अभिक्रिया के अंत में वैसे की वैसे बच जाते हैं, उत्प्रेरक कहलाते हैं । ये दो प्रकार के होते हैं-(i) धनात्मक उत्प्रेरक (वेग बढ़ाने वाले) (ii) ऋणात्मक उत्प्रेरक (वेग घटाने वाले) 

 अम्ल, क्षार एवं लवण (Acids, Bases and Salts) 

 अम्ल (Acid): 

वे यौगिक ज़ो जल में घुलकर H+ आयन देते हैं, अम्ल कहलाते हैं। अम्ल स्वाद में खट्टे होते हैं एवं नीले लिटमस को लाल कर देते हैं । प्रमुख अम्ल है-सल्फ्यूरिक अम्ल या गंधक का अम्ल (H2SO4), हाइड्रोक्लोरिक अम्ल या नमक का अम्ल (HCI), नाइट्रिक अम्ल या शोरे का अम्ल (HNO3)आदि। 
 

 क्षार (Base): 

वे यौगिक जो जल में घुलकर OH- आयन देते हैं, क्षार कहलाते हैं। क्षार स्वाद में कड़वे होते हैं एवं लाल

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